कविता

इश्क की चाय

एक कप इश्क की चाय पिला देना

उसमें थोड़ी सी वफा भी मिला देना
जब दम घुटने लगे इस जमाने की
बेवफाई भरी आवोहवा में तब सुनो
तुम सांसों में दर्द सा कुछ मिला देना
एक कप इश्क की चाय पिला देना
कहाँ हमेशा के लिए कुछ होता है
अपना इस नामुराद से जमाने  में
जब कोई अपना बिछड़ने लगे तुमसे
तुम हौले से बस जहाँ में मुस्कुरा देना
एक कप इश्क की चाय पिला देना
मौसम सर्दियों का हो रहा आजकल
ठंडे पडे़ रिश्तों को थोड़ा सुलगा देना
मौसम की मनमानिया बहुत हो गई
रिश्तों में अपनी मर्जी भी मिला देना
एक कप इश्क की चाय पिला देना
ना अदरक ना इलायची ना सोंठ हो
ना रिश्ते कपास हो ना अखरोट हो
ख्याल रखकर मेरा अपने हिसाब से
कुछ तीखी  चटपटी चाय बना लेना
एक कप इश्क की चाय पिला देना
अगर मन हो तुम्हारा तो रिश्तों में
खुशियों की कली भी खिला लेना
चाहो तो दिल का सारा बाग लूट लो
पर उस बाग का माली मुझे बना देना
कमबख्त लोग जलते बहुत है इश्क से
तुम खुद ही इश्क में अपने थोड़ी सी
तड़कती भड़कती आग लगा देना
आग लगे जल जाये ये बेरहम जमाना
तुम इस आग में थोडा घी मिला देना
एक कप इश्क की चाय पिला देना
आरती त्रिपाठी

आरती त्रिपाठी

जिला सीधी मध्यप्रदेश