गीतिका/ग़ज़ल

खुद को तबाह मत करना

मोहब्बत यदि गुनाह है तो गुनाह मत करना
किसी के वास्ते खुद को तबाह मत करना।
तुम उसको चाहो भले,वो तुम को भी चाहे
भूलकर कभी भी तुम ऐसी चाह मत करना।
जानकर यदि अंजान है वो तुम्हारे एहसासों से
दर्द सह लेना मगर,मुंह से आह मत करना।
आदत है उस पर हक जताना तो जताते रहना
पर नजरों में खुद की नीची निगाह मत करना।
तुम मुठ्ठियों में छिपा सकते हो चांद सूरज को
टूटकर कभी अपने हौसले का दाह मत करना।
मोहब्बत करने से बेहतर है दीन दुखियों की सेवा
मतलबी,झूठे,लालची लोगों से निबाह मत करना।
— आशीष तिवारी निर्मल

*आशीष तिवारी निर्मल

व्यंग्यकार लालगाँव,रीवा,म.प्र. 9399394911 8602929616