मुक्तक
मंजिल अगर गलत हो तो उस राह से बचिए
चापलूसों की तारीफ से वाह-वाह से बचिए
भगवान ने सबको दिए हैं बुद्धि और विवेक
उपयोग उनका कीजिए अफवाह से बचिए
किस सांचे में ढ़ल गए हो जरा ये बता दो
दिल से क्यों निकल गए हो जरा ये तो बता दो
तुमको नाज मेरी शख्सियत पे था कभी
क्यों बदल गए हो जरा ये तो बता दो
जो चाहो मेरा वो इम्तिहान ले लो तुम
अपनी तसल्लियों की पूरी खान ले लो तुम
जज्बात,भावना,मेरा दिल और धड़कनें
कम अगर लगे तो मेरी जान ले लो तुम
दिल की दीवारों दर का हर आयाम तेरा हो
मेरा जो हो सही मगर अंजाम तेरा हो
रब से यही है बस मेरी एक दुआ
मरता रहूं तो लब पे मेरे नाम तेरा हो
— विक्रम कुमार