ख्वाब
एक ख्वाब जो कभी देखा था,
उस अल्हड़ उम्र में जब सभी,
एक ख्वाब से दूसरे ख्वाब में,
खेलते दौड़ते रहते थे अक्कसर,
उसी ख्वाब को देख लिया था,
इन आँखों ने अपने ख्वाबों में,
आज वही ख्वाब निकल गया,
मंजिल अपनी पाने के लिए,
जब ख्वाब हो साकार होगा,
सामने ऐसे जैसे मिला “कोहिनूर”
राह ख्वाब की आसान न थी,
बहुत सी मुश्किल आई हरदम,
साथ मेरे थे बहुत मेरे अपने,
जिन्होंने हर कदम पर साथ दिया,
हौंसला न टूटने दिया कभी भी,
सभी के साथ से ख्वाब होगा पूरा,
वो दिन दूर नहीं जब साथ होगा ,
मेरा ” ख्वाब” बन हकीकत।।
सारिका औदिच्य