बैठी कर के सोलह शृंगार देखो
बैठी कर के सोलह श्रृंगार देखो
रूप सलोना मन के उमंग देखो
कजरारे आंखो से लज्जा झलकता है
होठ के लाली से मधुर मुस्कान टपकता है
हाथ में जो रच गये हैं मेहंदी
लाये गहरा रंग पिया के नाम की
खनके चूड़ी चमके बिंदिया
पिया के इंतज़ार में गायब हुई निंदिया
टिका नथिया झुमका गजरा
शोर करे पैरो के पायल बिछिया
जिसकी एक बोली से
चहक उठता था घर आंगन
आज शांत हो बन बैठी है दुल्हन
बाबुल से बिछड़ने का दुख
पिया से मिलने का सुख
किस जद्दोजहद मे फसी
कि गायब हो गये लब की हंसी
बाबुल का घर छोड़ चली
पिया का घर बसाने चली
दो घरो की रौनक इससे
न जाने कितने रूप इसके।
निवेदिता चतुर्वेदी ‘नीव्या’