लघुकथा

विडम्बना

विडम्बना

“बहु ओ बहु कहाँ मर गयी!“ सुषमा जी पूजा घर से चिल्ला रही थीं। आज नवरात्रि का पहला दिन था। पंडित जी को और भी घरों में जाना था वो थोड़ा जल्दी में थे।
ष् क्या बोलूँ पंडित जी! पता नहीं कैसी बहुरिया पल्ले पड़ गई। कल से ही बोल रखी थी सुबह सब तैयार रखना पर पता नहीं खया करती रहती है।ष् सुषमा जी के तेवर बदल रहे थे।
“जजमान! थोड़ा जल्दी करिए और जगहों पर भी जाना है हमें।” पंडित जी आतुरता से बोले।
सुषमा जी गुस्से में उठी और धड़धड़ाते हुए सीढियां चढ़ने लगीं। ऊपर पहुँचकर देखी तो बहु अपनी छः महीने की बेटी को दूध पिला रही थी। उन्होंने आव देखा ना ताव झट से बहु के बाल पकड़ के खींचते हुए बोली—
“नीचे कब से चिल्ला रही हूँ तुम्हें सुनाई नहीं देता? यहाँ ई कुलक्षिणी को लिपटाये पड़ी हो उधर कितना कहने के बाद तो पंडित जी पहले मेरे घर आये हैं कलश रखवाने। तुझे पता नहीं इस बार सबसे पहले इस घर में दुर्गा जी की पूजा होगी? पता ना किस जन्म के पाप से इस घर में बेटी पैदा हो गयी है, पर अब नहीं। चल जल्दी नीचे!

कविता सिंह

पति - श्री योगेश सिंह माता - श्रीमति कलावती सिंह पिता - श्री शैलेन्द्र सिंह जन्मतिथि - 2 जुलाई शिक्षा - एम. ए. हिंदी एवं राजनीति विज्ञान, बी. एड. व्यवसाय - डायरेक्टर ( समीक्षा कोचिंग) अभिरूचि - शिक्षण, लेखन एव समाज सेवा संयोजन - बनारसिया mail id : [email protected]