पत्र जो लिखा पर भेजा नहीं
लिख दिया ग़मों को,
मैंने एक पत्र में,
मन हल्का कर लिया,
समय के रहते जीवन में।
लिख दिया ख़ुशी के पलों को,
मैंने एक पत्र में,
मन खुश कर लिया,
समय के रहते जीवन में।
दोनों रहते सदा साथ हमेशा,
आते रहते बारी-बारी,
इसी का नाम तो जीवन है,
क्या लिखूँ अब पत्र में आगे?
ग़म और ख़ुशी हैं,
वो दो अनमोल रतन,
जिनके बिना हमारा जीवन,
बना रहता अधूरा सा।
पत्र जो लिखा पर भेजा नहीं…….
— नूतन गर्ग (दिल्ली)