वो दो सखियाँ …
सबसे छुपते छुपाती
आपस में बतियाती
कभी घर की बुराई
कभी खामियों को
एक दूसरे को बताती
तो कभी परिवार की
अच्छाईयों को व्यक्त करती
तराजू के पलडों में रिश्तों के
अच्छे बुरे अनुभव को तोलती
वो दो सखियाँ …
रिश्तों को सम्भालने की
जद्दोजहद करती
खो न जाये कुछ
इस बात से डरती
जीवन के हर पहलू पर चर्चा करती
वो दो सखियाँ ….
घर के रखरखाव से लेकर
रिश्तो को खूबसूरत बनाने
विचार विमर्श करती
“ये आ गये है बात में बात करती ”
ये कहकर जल्दी से
बात खत्म करने बाली
वो दो सखियाँ ….
देर तक बतियाने के बाद
सूपे की तरह रिश्तों और
घर परिवार की बुराई
को हैं फेंक देती
और अपने पास है रखती
अच्छाई अच्छे पलों की
और ढूंढ़ती है खुशियाँ
तलाशती है बहाने कि
कैसे सब खूबसूरत बनायें
पिया की बातों को लेकर
एक दूसरे को छेडती
आखिर में हँसती
खिलखिलाती अल्हड सी
वो दो सखियाँ …..
— रजनी चतुर्वेदी (विलगैंया)
को छूती रचना 👌