आसान नहीं
आसान नहीं
खुद से खुद की लड़ाई
मानसिक रूप से तोड़ता
हर पल एक जद्दोजहद
दिन दोपहर रात।
जूझना खुद से
कभी हारना तो
कभी जीतना
कभी हँसना
तो कभी रोना
पहुँचना कभी
विछिप्तता के कगार तक।
सच!
आसान नहीं होता
खुद को हराना
खुद के हाथों
और
तब तो बिल्कुल भी नहीं
जब हो पता
रह जायेगी रिक्त हथेली
हो जाएंगी आँखें सूनी।
पर निराशा स्वीकार्य नहीं
सुनिश्चित है अंत हर लड़ाई का
“फकीरी” ही सही!!!