हास्य कहानी – मोबाइल का मतवाला
पुराने मित्र आलोक की पत्नी खुशबू भाभी ने सुबह-सुबह मुझे फ़ोन किया। रोती बिलखती बोली, मेरे जीवन में ज़हर घुल चुका है। पति की बेरुखी अब बर्दाश्त से बाहर है। तुरंत हमारे घर आकर निर्णय करें, वरना…… मैं कुछ कहता या पूछता, उसके पहले ही उन्होंने फ़ोन काट दिया।
मैंने हड़बड़ाकर आलोक को मोबाइल पर फ़ोन लगाया। फ़ोन की घंटी बजती रही, मगर फ़ोन नहीं उठाया गया। मेरे दिमाग़ में नये-नये नकारात्मक विचार पनपने लगे। शंकाओं, कुशंकाओं ने जन्म लेना शुरू कर दिया। डरते, सहमते, घबराते, सोचते हुए आलोक के घर पहुंचा।
दरवाज़े की घंटी बजाई। द्वार सदैव मुस्कुरानेवाली, मासूम चेहरेवाली खुशबू भाभी ने ही खोला। उनकी मोहक मुस्कान देखकर, मुझे बीते दौर की ख़ूबसूरत फ़िल्म अदाकारा मधुबाला और आज के ज़माने की अभिनेत्री माधुरी दीक्षित की याद ताज़ा होती है। लेकिन अब खुशबू का मुरझाया, मातमभरा चेहरा, दुख के बादल जैसा प्रतीत हो रहा था। उदास, गमगीन चेहरा इस बात की चुगली कर रहा था कि बहुत बड़ी गड़बड़ है। मन में विचारों का चक्र शुरू हो गया, कहीं यह सुनामी तूफ़ान आने के पहले का सन्नाटा तो नहीं?
बातचीत जारी रखने के नेक इरादे से मैंने खुशबू से पूछा, आलोक कहां है? मेरे पूछे गए प्रश्न ने मानो आग में घी डालने का काम किया। सुबकते-सिसकते, रोते हुए उसने बताना शुरू किया, आज हमारी शादी की वर्षगाँठ है। छुट्टी का दिन होने के कारण, आलोक ने सुबह देर से उठकर चाय पी और झोला उठाकर सब्ज़ी मंडी चले गए हैं। मुझे विश तक नहीं किया। जब से वो कलमुंही उनकी ज़िंदगी में आयी है, मेरा सारा सुख-चैन छिन चुका है। उठते -बैठते, खाते-पीते, सोते-जागते, घूमते-फिरते उसी में डूबे, रमे रहते हैं। पता नहीं, उस काली नागिन ने ऐसा कौन-सा जादू किया है जो मुझसे खिंचे-खिंचे से रहने लगे हैं ………..।
मैं गहरी सोच में डूब गया। मांस, मछली, मदिरा और महिलाओं से हमेशा दस फुट की दूरी पर रहनेवाला आलोक, इस हद तक कैसे गिर सकता है? मेरी लिए यह अजीब, उलझनवाली पहेली जैसा था। समस्या को सुलझाने की ख़ातिर खुशबू से अनमने मन से पूछना पड़ा, क्या आप मुझे उसका नाम, पता या फ़ोटो दिखा सकती हैं?
फ़ोटो क्यों भाई साहब, देवी के साक्षात दर्शन ही करवाती हूँ। भाभी ने पैर पटकते, सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर के कमरे की ओर जाते हुए क्रोध से कहा। मेरे लिए यह दूसरा झटका था। पल भर में लौटकर खुशबू ने उसे दिखाते हुए मुझसे कहा, यह रही मेरी सौतन और आलोक की बीवी नंबर वन। मेरे जी का जंजाल। पता नहीं किस मुए मित्र ने उन्हें उकसाया था, जिसके कारण मेरी छाती पर मूंग दलने के लिए इसे उठा लाए हैं …………….। विस्मय से मेरी आंखें फटी की फटी रह गईं। खोदा पहाड़, निकली चूहिया। वो कोई महिला न होकर, आलोक का स्मार्टफ़ोन था।
दरअसल, वो कलमुंहा मित्र मैं ही हूँ, जिसके जोर देने पर ही आलोक ने स्मार्टफ़ोन खरीदा था। मेरे लिए रणभूमि में खड़े अर्जुन जैसी दूविधा, मजबूरी थी। अपनों से कैसे लड़ा जाए? रणभूमि में तो श्रीकृष्ण ने अर्जुन का मार्गदर्शन किया था, यहां पर दोनों भूमिकाएँ मुझे अकेले ही निभानी थी। मरता, क्या न करता । मन मारकर, दृढ़ निश्चय करके, खुशबू को अचूक, रामबाण उपाय बताना पड़ा, आलोक की मोबाइल वाली लत छुड़ाने के लिए। उपाय सुनकर खुशबू का चेहरा ख़ुशी से खिल उठा, गुलाब की पंखुड़ियों की तरह।
खुशबू ने अकेले में आलोक को प्यार भरी धमकी देते समझाया, आप जितनी देर तक वाट्सएप, फ़ेसबुक, ट्विटर आदि पर चैटिंग करते रहेंगे, उतना समय मैं फ्लिपकार्ट, अमेजान, जबान्ग आदि पर शॉपिंग करते व्यस्त रहूंगी। खुशबू की चेतावनी ने चमत्कार दिखाया। अकेले, असहाय आलोक पर अच्छा असर पड़ा। तुरंत ही अपनी हार मानकर, हथियार डाल दिए। स्मार्टफ़ोन से तौबा करके, आनन-फानन में उसे बेच डाला। संदूक में सड़ रहे बटन वाले पुराने, नापसंद मोबाइल को निकालकर, मजबूरिवश उसका उपयोग करना शुरू किया। इस तरह, आलोक ऑनलाइन से ऑफलाइन हो गए। किसी ने सच ही कहा है, दुनिया झुकती है, झुकानेवाला चाहिये !
— अशोक वाधवाणी