संकल्प यात्रा से आमजन को मिलेगी सिद्धी
भारत के कम्युनिस्ट पार्टी को कभी “कौशल पार्टी ऑफ इंडिया” के नाम से जाना जाता था। हालांकि जन्म से ही इस पार्टी का सिद्धांत अवसरवादी रहा है। जब जैसी स्थिति देखा अपने को वैसा बना लिया। बारम्बार भूल करते-करते बंगाल में २०११ साल में पार्टी ने हार मान ली और पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस की सरकार बनी। तृणमूल के सत्ता में आने के बाद (तासखंद १९१९) माकपा का दूर-दूर तक कोई अता-पता नहीं है। पिछले साल ही भाजपा ने कांग्रेस के कमजोरी को आधार बनाकर केंद्र में अपनी शक्ति प्रदर्शन किया और बीते लोकसभा चुनाव में केंद्र में सत्ता काबिज कर नीतिवादी साबित करने की कोशिश की। लेकिन यह कोशिश स्वयं भाजपा के हाथों मटियामेट होने के साथ-साथ सत्ता खोने का सबब बन गया है। कारण – “लूट की नीति” एवं बेबुनियाद आरोप- प्रत्यारोपण। अर्थ यह कि दूसरे दलों के नेताओं को प्रलोभन देकर भाजपा में शामिल करना और इस कार्य में तृणमूल के शीर्ष नेता मुकुल राय ने किया। अब देखिए कि उन्होंने सितंबर तक जिस तृणमूल नेताओं को अपनी कुटनीति के दम पर भाजपा में शामिल करवाया है, उसमें से कुछ तो दागदार निकले तो कुछ और उदाहरण- मनिरुल हक। अंततः कुछ नेताओं ने तृणमूल में वापसी ली। दूसरा उदाहरण भाटपाडा (उत्तर 24 परगना) है जहां से तृणमूल कांग्रेस के ही शीर्ष एवं मुकुल राय की तरह दलबदलू नेता अर्जुन सिंह एवं अन्य तृणमूल नेता साब्य साची दत्त (विधाननगर) ने भाजपा का दामन थामा है। यहां के ३३ पार्षदों में से २१ पार्षदों ने अक्टूबर महीने के अंत में तृणमूल में वापसी ले ली। बाकी 12 सदस्यों ने भी सात नवम्बर को राज्य के शहरी विकास मंत्री और कोलकाता के मेयर फिरहाद हकीम की उपस्थिति में भाजपा से 12 पार्षदों ने वापस तृणमूल का दामन थाम लिया है। इस दौरान फिरहाद के अलावा बैरकपुर से पूर्व तृणमूल सांसद दिनेश त्रिवेदी और उत्तर 24 परगना से जिला तृणमूल अध्यक्ष तथा राज्य के खाद्य आपूर्ति मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक भी मौजूद थे। अब सवाल है भाजपा संकल्प यात्रा के माध्यम से बंगाल एवं अन्य जगहों पर जनता को अच्छे दिन दिखा पाएगी?
प्रत्येक संगठन या राजनैतिक दलों की अपनी नीति होती है लेकिन वर्तमान भाजपा ने सभी नीतियों को दरकिनार कर जोड़- तोड़ की नीति अपनाई है। वह जहां एक ओर गांधी को अपना आदर्श बताकर संकल्प यात्रा कर रही है वहीं दूसरी ओर आर.एस.एस. द्वारा पूजित एवं गांधी जी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का भी समर्थन कर रही है। इससे स्पष्ट होता है कि वर्तमान भाजपा वाजपेई जी के समय की भाजपा की तरह नहीं बल्कि आस्था को रही है। इस हालत में भाजपा को सत्ता में आना मुश्किल जान पड़ता है।
पासा पलटते देख छह नवम्बर को मुकुल रॉय ने बयान जारी किया कि तृणमूल कांग्रेस समेत माकपा और कांग्रेस के कुल मिलाकर 108 विधायकों ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और गृह मंत्री अमित शाह को चिट्ठी लिखी है। इसमें उन्होंने भाजपा में शामिल होने की इच्छा जाहिर की है। दरअसल विधायक देवश्री रॉय ने एक ऐसी ही चिट्ठी लिखी थी जो सामने आई है। इस बारे में जब मुकुल राय से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि केवल देवश्री रॉय ही नहीं बल्कि 110 नेताओं ने अमित शाह को चिट्ठी लिखी है। इसमें से माकपा, तृणमूल और कांग्रेस के कुल 108 विधायक हैं। इसके बाद कई दिनों से संशय बरकरार रहने के बाद छह नवम्बर को ही यह साफ हो गया कि तृणमूल के मेयर शोभन चटर्जी एवं उनकी महिला मित्र बैसाखी बनर्जी ने भी भाजपा से मुंह मोड़ रहे हैं। पार्टी सूत्रों के अनुसार तृणमूल में वापस जाने के लिए शोभन, देवश्री ने अमित शाह को चिट्ठी लिखी है। इसी साल गत 14 अगस्त को दिल्ली में जब शोभन चटर्जी और बैसाखी बनर्जी ने भाजपा की सदस्यता ली थी उसी दिन देवश्री चौधरी भी वहां जा पहुंची थी। खबर थी कि वह भी भाजपा में शामिल होंगी लेकिन शोभन चटर्जी और बैसाखी बनर्जी की आपत्तियों की वजह से उन्हें शामिल नहीं कराया गया था। शोभन चटर्जी के वापसी की संभावना और भी प्रबल तब हो गई जब इसके तुरंत बाद उनकी सुरक्षा बढ़ा दी गई। राज्य सरकार की ओर से वाई श्रेणी के तहत पूर्व मेयर को संरक्षण देने का फैसला किया गया। दूसरी ओर, शोभन भी हर एक कदम सोच समझकर उठाना चाहते हैं।
जहां एक ओर मेदिनीपुर जिले के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष एवं अन्य नेतागण मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को बंगाल में बेरोजगारी के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। राज्य में रोजगार सृजन न करने के कारण श्रमिकों को बंगाल से बाहर जाने के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, दूसरी ओर उन्हें यह ध्यान रखना चहिए कि कोलकाता के सॉल्टलेक में ही विभिन्न राज्यों – कश्मीर, राजस्थान, पुणे महाराष्ट्र, उड़िसा एवं अन्य जगहों से आए तकनीशियनों को भी ध्यान में रखना चाहिए। सवाल है कि यदि बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस रोजगार सृजन मामले में निरीह है तो केन्द्र सरकार कितना सक्रिय है कि दूसरे राज्यों में रोजगार की कमी के कारण लोग बंगाल आ रहे हैं? कहने का अर्थ है कि यदि रोजगार को वोटबैंक के लिए राजनीतिज्ञों द्वारा ढाल बनाया जा रहा है। यदि शिक्षा या रोजगार के लिए बंगाल से बाहर जाना राज्य के लिए बदनामी है तो यह बदनामी हुगली जिले के चंद्रयान-2 के सफर में बंगाल के चंद्रकांत ने लिया है। लेकिन इस कार्य को राज्य की बदनामी नहीं बल्कि देश का गर्व कहा जा रहा है। अर्थ है कि जब देश एवं राज्य का नाम हो रहा है तो बाहर जाना या भीतर आना नजर जायज है जब बदनामी हो रही है तो बाहर जाना बेकार है? इसके पहले –
Ø चेन्नई के निवासी नोबेल विजेता सुब्रमण्यम चंद्रशेखर खगोल भौतिक शास्त्री थे। उन्हें 1983 में भौतिक शास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था। वह नोबेल विजेता सर सीवी रमन के भतीजे हैं।
Ø कोलकाता के शांति निकेतन में जन्में आमर्त्य सेन 1998 का नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले एशियाई प्रोफेसर हैं।
Ø पंजाब के निवासी अभिनव बिंद्रा 11 अगस्त 2008 को बीजिंग ओलंपिक खेलों की व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतकर व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीतने वाले वह पहले भारतीय खिलाड़ी हैं। वे एयर रायफल निशानेबाजी में वर्ष 2006 में विश्व चैम्पियन भी रह चुके हैं।
Ø कोलकाता के बारानगर (उत्तर 24 परगना जिला) में जन्मी डोला बेनर्जी एक भारतीय महिला खिलाड़ी है जो तीरंदाजी में प्रतिस्पर्धा करती है। 2004 के ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। 2007 में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्वर्ण पदक तब जीता। इसके बाद क्रमशः 2004, 05, 06 साल से लेकर 2010 तक कई पदक जीती।
Ø पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी की निवासी एवं भारतीय एथिलिट स्वप्ना बर्मन ने 2018 के एशियाई खेलों में देश को पांचवां गोल्ड मेडल दिलवाया है। इसके बाद 2002 के एशियाई खेलों की रजत पदक विजेता सोमा विश्वास का उदाहरण दिया जिन्हें उस समय की सरकार ने जमीन उपलब्ध करवाई थी।
इसके अलावा कई ऐसे दिग्गज हैं जो कि राज्य से बाहर जाकर शिक्षा-दीक्षा ग्रहण किया एवं देश समेत राज्य का नाम रौशन किया है। अब देखिए कि इस पूरे वित्तीय वर्ष 2018 से लेकर 2019 में अधिकांश गैर सरकारी कर्मचारियों को सटिक समय पर वेतन नहीं मिल रहा है। इसके अलावा ऊपर के कर्मचारियों जैसे –एयर इण्डिया को भी कई महीनों तक वेतन नहीं मिल रहा जबकि भाजपा संकल्प यात्रा कर अपने सिद्धी लाभ में जुटी हुई है। हालांकि यह नहीं लगता कि संकल्प यात्रा से आम जनता को लाभ मिलेगा क्योंकि भाजपा की यह यात्रा बस एक जुआ है जिसमें श्रमिकों की आह लेकर जीत पाना मुश्किल होगा।
— गंगा ‘अनु’