गीतिका
समांत-अना
पदांत-पूनम की है रात
मौसम बड़ा सुहावना, पूनम की है रात।
जागी मन में भावना, पूनम की है रात।
पिया गए परदेस को, मनवा उठे हिलोर।
कब आओगे साजना, पूनम की है रात।
कैसे बीते जिंदगी, बिन तेरे भरतार।
कठिन लगे है साधना, पूनम की है रात।
चंचल किरणें चांद की, बैरिन हो गई आज।
जीवन लगे डरावना, पूनम की है रात।
सूना सूना सा लगे, पिया बिना संसार।
उदासीन मनवा बना, पूनम की है रात।
— प्रेम सिंह राजावत “प्रेम”