कविता

ऐसे क्यों हो तुम

 

ऐसे क्यों हो तुम ??

क्यों मुझे इतना सताते हो ,
मुझे पास बुलाते हो हरदम,
खुद दूर चले जाते हो तब,

ऐसे क्यों हो तुम???

खुद याद तुम्हारी दिलाते हो,
जीना दुर्भर करते हो मेरा,
खुद चैन से जीते हो ,

ऐसे क्यों हो तुम??

खुद करते हो प्रेम मुझसे,
मैं करने लगी जब प्रेम तुमसे,
तुम दूर हो गए मुझसे,

ऐसे क्यों हो तुम ?

यादें खुद की भर दी मुझमें,
जब याद करती हूं तो,
मुझको बहुत रुलाते हो ,

ऐसे क्यों हो तुम ?

जब तुमको दूर ही जाना था,
क्यों नज़दीक आये मेरे,
दिल में प्रेम को जगाया क्यों ,

ऐसे क्यों हो तुम ?

मेरी हालत तेरे विरह में ,
पानी बिन मीन सी हो गई,
तुझसे ज्यादा मैं तड़फती हूँ,

ऐसे क्यों हो तुम ?

तुम तो सदियों से हो” छलिये”
जानते हुए तुमसे प्रेम किया,
खुद को तेरे हाथों छलने दिया,

ऐसे क्यों हो तुम ?

अब न बंसी बजाना तुम,
मीठी मीठी बातें न करना,
मोहक रूप न बनाना तुम,

ऐसे क्यो हो तुम ??

कान्हा तुमने अपने प्रेम में ,
मुझको लिया फंसा बहुत,
छुटे नहीं छूट पा रही तेरे प्रेम से ,

ऐसे क्यों हो तुम कन्हैया ??

सारिका औदिच्य

*डॉ. सारिका रावल औदिच्य

पिता का नाम ---- विनोद कुमार रावल जन्म स्थान --- उदयपुर राजस्थान शिक्षा----- 1 M. A. समाजशास्त्र 2 मास्टर डिप्लोमा कोर्स आर्किटेक्चर और इंटेरीर डिजाइन। 3 डिप्लोमा वास्तु शास्त्र 4 वाचस्पति वास्तु शास्त्र में चल रही है। 5 लेखन मेरा शोकियाँ है कभी लिखती हूँ कभी नहीं । बहुत सी पत्रिका, पेपर , किताब में कहानी कविता को जगह मिल गई है ।