सामाजिक

आखिर कब तक प्रियंका रेड्डी जैसी महिलाओं की आबरुह और जान से खेलते रहेंगे दरिंदे?

देश के कुछ अमानवीय कृत्यों को देखकर किस सहृदय व्यक्ति की अश्रुधार प्रवाहित न होगी? हमारा देश एक ऐसे देश के नाम से जाना जाता है जो सदा परस्पर सौहार्द, प्रेम व सहयोग के भावों को जागता रहा है किन्तु देश की वर्तमान दुर्दशा को देखकर अत्यन्त वेदना होती है कि क्या हमारे देश की दिशा व दशा अपने निम्नतम स्तर पर आ गिरी है?

देश में बलात्कार की समस्या निरन्तर अपने उच्चतम स्तर पर हैं, आजतक टी.वी. के सर्वे के अनुसार प्रति दिन 106 बलात्कार होते हैं और एक वर्ष में 40,000 बलात्कार होते हैं। ये सर्वे कहॉं तक सत्य है इसकी खोजबीन की आवश्यकता नहीं है पर चिन्तन का विषय है कि बलात्कार जैसी समस्या का आगमन ही क्यों रहा है? बलात्कार के केसों की संख्या निरन्तर बढ़ती ही क्यों जा रही है? क्या इस समस्या का कोई समाधान है भी या नहीं? कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रत्येक ऐसे घटनाक्रम के पश्चात् हम फेसबुक, ट्विटर आदि पर पर अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त कर अपनी जिम्मेदारी को पूर्ण हुआ मान लेते हैं और शान्त हो जाते हैं।

प्रथम तो हम उस घटना को जानने का यत्न करते हैं, जिस घटना के विषय में कोई भी सरकारी तन्त्र अपना मुख खोलने को तैयार नहीं है। सब अपनी राजनीति की रोटियां पकाने में लगे हुये हैं।

यह घटना एक ऐसी दर्दनाक घटना है, जिसकी सत्यता को जानकर शायद ही कोई पुरुष अपनी बेटी को घर से अकेले जाने देगा। हैदराबाद के समसाबाद में रहने वाली प्रियंका रेड्डी जो पशुओं की डॉक्टर थी, अपने घर से 30 किलो मीटर दूर प्रतिदिन नौकरी के लिये जाया करती थी। 27 नवम्बर के दिन प्रियंका नौकरी करके अपने व्यक्तिगत स्कीन सम्बन्धित समस्या के लिए डॉक्टर से चिकित्सा आदि कराकर टोल प्लाजा की पार्किंग जहॉं अपनी स्कूटी प्रतिदिन खड़ी करती थी, वहॉं पहुॅंची। तब रात्रि के 9:15 का समय था। स्कूटी का टायर पैंचर था, यह देखकर प्रियंका बहुत दु:खी हुई। चारों ओर नजर दौड़ाती है, पर कहीं भी आशा की किरण दिखायी नहीं देती। ऐसे में वह अपनी बहन को कॉल करके कहती है कि मैं ऐसी समस्या में फंस गयी हूॅं। कोई भी रास्ता नजर नहीं आ रहा है। छोटी बहन समाधान देती हुई कहती है कि टैक्सी करके घर आ जा, पर प्रियंका को अगले दिन की भी चिन्ता थी कि कल मैं कैसे आंउगी? अपनी बहन को प्रियंका ने बताया कि यहॉं सभी लोग मुझे गंदी नजर से देख रहे हैं। कॉल पर मेरे से बात करते रहना, मुझे बहुत डर लग रहा है। अचानक कॉल कट जाती है, फिर 9:42 पर छोटी बहन कॉल करती है और करती ही रहती है पर कॉल आज तक नहीं उठी। छोटी बहन रात को ही पार्किंग स्थल पर पहुॅंचती है, पर वहॉं कोई नहीं मिलता, पास के पुलिस थाने पहुॅंचती है, मदद मांगती है। पुलिस खोजबीन करती है पर कोई हल नहीं निकल पाता। अगले दिन पता लगता है कि टोल प्लाजा के पास ही कोई फ्लाई ओवर के नीचे एक जली हुई लाश मिलती है। उसकी जांच पड़ताल करने पर प्रियंका की पुष्टि होती है। प्रियंका के साथ चार दुष्ट पापियों ने दुष्कर्म करने के पश्चात् पैट्रोल डालकर जलाकर फ्लाई ओवर से नीचे फेंक दिया।

देश में हर रोज यही घटनायें हो रही हैं, कभी घटना निर्भया पर घटित होती है, तो कभी ट्विकल पर तो कभी प्रियंका रेड्डी पर… और न जाने किस—किस पर ये घटनायें घटित होती रहेंगी। और इस प्रकार की घटनाक्रम को पूर्ण करने में यदि किसी का सर्वाधिक हाथ है तो वह है लव जिहादी अल्प्संख्यक समाज। आज मुझे यह लिखते हुए बिल्कुल भी भय या शंका नहीं हो रही कि ऐसी घटनायें सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम लोग ही कर रहे हैं। फिर भी जब इस तरह की घटनाओं पर मुस्लिम नेताओं से पूछा जाता है तो वे कहते हैं कि बलात्कारियों तथा आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता।  अरे! हम कैसे मान लें कि उनका कोई धर्म नहीं है? चर्चित गैंगरेप निर्भया कांड में मुस्लिमों का हाथ, ट्विकल शर्मा कांड में मुस्लिम, अब डॉ. प्रियंका रेड्डी काण्ड में मुस्लिम और बताओं कितने सबूत दें कि बलात्कारियों और आतंकवादियों का भी धर्म होता है। और उसका नाम है इस्लाम, पूरी दुनिया में कहीं भी कोई आतंकवादी घटना होती है तो साजिशकर्ता होता है इस्लाम का अनुयायी मुसलमान। सच तो यह है कि आज के आतंकवादियों में 99.99 प्रतिशत आतंकवादी मुसलमान हैं, इन लोगों को कोई कुछ कहने वाला नहीं, क्योंकि राजनीति में सबको संतुष्ट करके रखना अनिवार्य है। आज कोई क्यों नहीं पुरस्कार लौटा रहा है? क्योंकि डॉ. प्रियंका रेड्डी न तो मुस्लिम है और न दलित। अगर यह काण्ड मुस्लिमों या दलितों के साथ हो जाता तो अल्पसंखक लोगों को भारत में खतरा, मानवाधिकार खतरे में, भारत में असहिष्णुता इत्यादि अमरवाक्य लगाकर बड़े—बड़े तथाकथित अभिनेता या प्रतिष्ठित लोग अपने पुस्कार वापस करते, अपने मुद्दे को यू.एन.ए. तक ले जाते लेकिन यहॉं तो कुछ नहीं हुआ,  क्योंकि रेड्डी तो हिन्दू है मुस्लिम नहीं। न्याय व्यवस्था आज सो रही है? कहॉं है वो सुप्रीम कोर्ट जो एक देशद्रोही को फांसी से बचाने के लिए रात को भी खुला रहता है। आज तक निर्भया की मॉं को न्याय नहीं मिला, 16 दिसम्बर 2012 की उस रात से निर्भया की मॉं को चैन से नींद तक न आयी है, न्यायालय तारीख पर तारीख दिये जा रहा है, न्याय तो मिलता ही नहीं। जब दोषी अपना दोष स्वीकार कर लेता है तो फिर सजा क्यों नहीं दी जाती? उसको दोषमुक्त करने के लिए समय देकर अवसर क्यों दिये जाते हैं? यह तो सरासर अन्याय है। और संविधान के अनुच्छेद (14—18) तक के समानता के अधिकार का उल्लंघन भी है।

वर्तमान की बलात्कार जैसी घटनाओं में कामुकता पूर्ण वातावरण तो कम दिखाई देता है यह केवल और केवल अपनी आवाज और ताकत को बुलंद करने का एक घिनौना षडयन्त्र मात्र है। मुस्लिम की बढ़ती हुयी जनसंख्या बलात्कार के लिए पूर्ण रूप से जिम्मेदार है। ये सब अल्पसंख्यक के नाम से लाभ लेते हैं। आज अल्पसंख्यक की परिभाषा को बदलने का समय आ चुका है। अल्पसंख्यक देश की जनसंख्या के अनुसार से न होकर क्षेत्र के अनुसार होने चाहिए। जैसे कश्मीर में मुस्लिम बहुसंख्यक हैं तो वहॉं हिन्दुओं को अल्पसंख्यकों जैसी सुविधा मिलनी चाहिए, पर नहीं, क्यों नहीं मिलती? इसका कारण यह है कि 1991—1992 में गठित अल्पसंख्यक आयोग ने पांच धर्मों- मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, सिख, पारसी इन्हें अल्पसंख्यक घोषित कर रहा दिया,   जहॉं ये लोग बहुसंख्यक हैं वहॉं ये पूरा उपद्रव मचाते हैं। उसी प्रकार हैदराबाद जैसे शहर में मुस्लिम लोगों की संख्या अत्याधिक है, वहॉं उनको किसी का कोई डर नहीं है। सभी नेता उनके इशारों पर काम करते हैं। अल्पसंख्यकों में मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, सिख, पारसी आते हैं, किन्तु बालात्कार के केसों में सर्वाधिक मुस्लिम समाज दिखायी देता है, अत: हम सक सकते हैं कि बालात्कार का दुसरा नाम मुस्लिम अल्पसंख्यक वर्ग है।

बलात्कार की घटनाओं में बड़े—बड़े चिन्तक, विचारक कहते हैं कि लड़कियों को ऐसे कपड़े नहीं पहने चाहिए, वैसे पहने चाहिए, ऐसे चलना चाहिए, वैसे नहीं चलना चाहिए। क्या ये चिन्तक ये बताने की कृपा करेंगे कि हम पॉंच साल की बच्चियों को साड़ी कैसे पहना सकते हैं? और वैसे भी आज तो प्रियंका अपने के अनुसार ही पहन कर चली थी, पर उसको भी नहीं छोड़ा हैवानों ने। और न जाने कितनी प्रियंका इन नीच हैवानों के हाथों से अपने प्राणों को खोती रहेंगी? क्या होगा आने वाली संतति का? क्या आने वाले समय में लड़कियॉं सुरक्षित हैं? अरे लड़कियॉं तो क्या कोई भी अकेला हिन्दू लड़का मुस्लिम बाहुल क्षेत्र में जाने से डरने लगेगा। क्योंकि सुरक्षा तो सम्भव है ही नहीं। आज मुझे आर.एस.एस. के बड़े दिग्गजनेता नहीं दिखायी दे रहे? और न ही वो भाजपा के राष्ट्रवादी नेता। जो दिन भर हिन्दुत्व—हिन्दुत्व चिल्लाते रहते हैं। आज इनका मुॅंह बन्द है, क्योंकि अगर ये बोलेंगे तो इनका वोट—बैंक का गणित बिगड़ जायेगा। जबकि सबकों पता है कि हैदराबाद का वोट ओवैसी के अलावा किसी को नहीं जाता। फिर भी ये कुछ नहीं करते। आज तो केन्द्रसरकार राष्ट्रवादियों की है, पर देश की दशा तो दयनीय ही है, इस विषय पर तथाकथित राष्ट्रवादियों को यथार्थ में चिन्तन करना चाहिए…

सरकार को न्यायव्यवस्था को सुदृढ़ करने का प्रयत्न करना चाहिए, नहीं तो ऐसे केस हर रोज आते रहेंगे और दोषियों को पकड़ा जायेगा, फिर बड़े—बड़े वकीलों की याचिका से दोषियों को जमानत मिल जायेगी, और जमानत में तो पूरी जिन्दगीं ही निकल जायेगी, पर न्याय की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता।

बलात्कार के प्रथम दोषी तो मुस्लिम लोग हैं ही और साथ ही इसका सबसे अहम कारण है नशा और मांसाहार। नशा और मांसाहार करने से दुष्ट लोगों की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है और बुद्धि से भ्रष्ट लोगों को मानवीयता आदि से कोई लगाव नहीं रह जाता, उन्हें तो बस… जो कर रहे हैं सो उचित लगता है। निर्भया, दामिनी, प्रियंका आदि के सभी केसों में दोषी नशे तथा मांसाहार से ध्वस्त थे, पर इस ओर चिन्तन ही क्यों जाये? इस ओर तो चिन्तन ले जाने का मतलब राजनीति या साम्प्रदायिकता का विवाद आरम्भ हो जायेगा। इसलिए हम चिन्तन करते नहीं, क्योंकि ऐसा करेगें तो हमारी अक्ल पर पत्थर गिर जायेंगे।

सरकार को मुस्लिमों हैवानों के ऐसे कुकृत्यों के लिए कठोरात्मक दण्डव्यवस्था का निर्माण कराना चाहिए और नशा और मांसाहार को यथाशीघ्र ही बन्द कराने का कोई वैकल्पिक मार्ग खोजना चाहिए। नहीं तो ऐसे रोने के दिन हर रोज आते रहेंगे। आज नहीं तो कल हम सब रोने वाले हैं।

हमारी हालत तो पिंजरे के मुर्गों जैसे हो गई है वहॉं जब कसाई एक मुर्गे को काटने के लिए निकलता है तो केवल वहीं चिल्लाता है बाकी सब मजे से दाना चुंगते हैं, उसी प्रकार जिस परिवार पर ऐसा जुल्म होता है, वहीं रोते—चिल्लाते हैं, बाकि सब सोचते हैं कि हमारे साथ थोड़ी न हुआ है, अत: हम व्यर्थ माथापच्ची क्यों करें? हमें प्रसिद्ध विचारक शिवखेड़ा के वाक्यों को ध्यान रखना चाहिए कि ‘अगर आपके पड़ोसी पर अत्याचार और अन्याय हो रहा है और आपको नींच आ जाती है तो अगला नम्बर आपका है’। हमें यह कदापि नहीं भूलना चाहिए कि पाप करने वाले को ध्यान में रखते हुए कार्य करना होगा कि ‘दुष्टों के साथ दुष्टता का व्यवहार करें’। अगर हमने यह नहीं किया तो हमारा विनाश अवश्यम्भावी है। आज समय है कुछ प्रयास कर लीजिए…

— शिवदेव आर्य

शिवदेव आर्य

Name : Shivdev Arya Sampadak Arsh-jyoti: Shodh Patrika Add.- Gurukul Poundha,Dehradun, (U.K.)-248007 Mobi.-08810005096 e-mail- [email protected]