लाल जोड़े को पहन बेटी सजाना रह गया
जब चली परदेश पिय छूटा घराना रह गया
माथ पर टीका गले में हार , नथनी नाक में
कान में कुंडल सुशोभित सा हिलाना रह गया
छोड़ रिश्ते दूसरे घर में विराजे लाड़ली
लाड़ भाई का सदा को तब लड़ाना रह गया
अम्ब का अवतार नारी वो दुर्गा औ पार्वती
जान पाए सत्य मन को खटखटाना रह गया
एक संग दो दो जहाँ को वो बसाए नित्य ही
मान औ सम्मान उस पर तो लुटाना रह गया