हास्य व्यंग्य

घर से निकलते ही … कुछ दूर चलते ही 

घर से निकलते ही हमारा सामना ऐसे लोगों से अक्सर हो जाता है  जो अपने फनी व्यवहार से जाने जाते हैं । एक बार प्लेटफार्म पर शर्मा जी खड़े  गाड़ी आने का इंतजार कर रहे थे तभी वर्मा जी मिल गए बोले और भाई साहब ट्रेन से जा रहे हो अब जाहिर सी बात है जब प्लेट फार्म पर खड़े हैं,  सामान भी  साथ में  है  कंधे पर बैग है  श्रीमती  बच्चे बगल में खड़े  हैं,  तो  ट्रेन से ही जा रहे है । अब इन्हें कौन समझाए?
वर्मा जी को अगर अस्पताल में कोई दिख जाता है तो पूछेगे कैसे आए ?  अरे भईया बीमार है, तभी आए हैं ठीक होते तो घर में रहते । बच्चा स्कूल जाता दिख जाता है तो  पूछेंगे सुबह-सुबह स्कूल जा रहे हो क्या ?
अरे भई स्कूल यूनिफॉर्म में बैग बाटल गले में लटकाकर  कोई पिकनिक मनाने तो नहीं जा सकता  हैं ।पर क्या करें बेचारे आदत से मजबूर हैं ।
वर्मा जी ने अपने घर में  तो  हद पार कर रखी है इनके बीवी बच्चों के  पास चार पहिया गाड़ी और ऊपर से दो पहिया वाहन भी सबके पास हैं। इनके घर मे हरेक  कमरे में  एसी ,फ्रिज, लेपटाप, टीवी,  अलमारी में ब्राडबेंड कपड़े  एप्पल के  मोबाइल। घर में हर जगह महंगा मार्बल लगा है । पेड़ों से तो इन्हें एलर्जी  है। इनको लगता पेड़ों से इनका घर गंदा हो जायेगा , लेकिन पर्यावरण दिवस पर भाषण देने खड़े हुए तो  ग्लोबल वार्मिंग पर धूआंधार भाषण देते हुए कहने लगे, लोगों पर वाहन  खरीदने पर  रोक लगनी चाहिए इससे प्रदूषण कम हो सकता है । इन  महाशय ने  पराली  जलाने वालों को जी भर के कोसा  मास्क और एयर प्यूरीफायर के नेट  प्राफिट का पूरा ब्यौरा देते हुए अपने घर में लगे आक्सीजन पार्लर का विज्ञापन भी लगे हाथ दे डाला कहने लगे  बहनों और भाइयों हमारे पार्लर में ताजी आक्सीजन तीन सौ रुपए में उपलब्ध है आईये और उसका लाभ लीजिए।
हाल में बैठे एक भाई साहब बोले- लो कर लो  बात इन्हें कौन समझावे की औरों की छोड़ो इनका कितना बड़ा योगदान है पर्यावरण बिगाड़ने   में, इनके लिए अगर कोई  नोबेल पुरस्कार हो तो जरुर इन्हीं को मिलेगा।
आज सुबह सुबह जब उठा कर छत पर खड़े थे तो  हमने देखा  वर्मा जी सिर पर सब्जी की खाली टोकरी रखकर धरने‌ पर बैठ गए कहने लगे टमाटरों की तेजी से तो हमारे गाल ही जल गए  और ये प्याज मुई  मुझे दस दस  आंसू रुला रही। कोई इनसे पूछे भई कम पैदावार हुई है तो थोड़ा कम खाकर भी तो काम चलाया जा सकता है पर नहीं इन्हें अनाप-शनाप खरीदना हैं और फिर सड़ाकर डस्टबिन में फेंकना   हैं । इन जैसे  लोगों  की ही वजह से ही तो टमाटर और प्याज  मंहगा हो रहा है । हमने वर्मा के  पास जाकर पूछा भाई वर्मा जी  क्या जरूरत थी  धरने पर बैठने की तो  दांत निपोरकर कर बोले  मुफ्त की पब्लिसिटी जो  मिल रही है और झट से  पत्रकार को इन्टरव्यू दे डाला  जिसमें नेताओं को  जी भरकर  कोसा  फिर दुखियारी पब्लिक के हितैषी बनकर   पब्लिक को दस तरीके बता दिए किफायत से सब्जी ‌की बचत करने  के  इनकी  फिलासफी सुनकर अनायास मुंह से निकला फनी पीपल तभी सामने से वर्माईन को हाथ में बेलन लिए इधर ही आते देखा तो हमें माजरा भांप लिया और अपने मुखमंडल को ज्योही वर्मा जी की तरफ किया उनके चेहरे की हवाइयां उड़ गई वर्माईन को बेलन  ताने देख वर्मा जी   लड़खड़ाते से उठे अपने पेरों में जेसे तेसे चप्पल में घुसाया और सिर पर पैर रखकर भागने लगे अरी   भागवान अभी लाया प्याज टमाटर ।  हमें भी घर के लिए सब्जी लेनी थी सो चल दिए नुक्कड़ की दुकान पर पत्नी जी द्वारा फटकारे गए वर्मा सब्जी वाले से भाव को लेकर जीरह कर रहे थे सब्जी वाला कह रहा था साहब प्याज टमाटर खरीदने की सामर्थ्य रखते फिर भी धनियां मिर्च मुफ्त में माँग रहे हैं कमाल के हैं । अरे बेटा तुझे पता नहीं मुझ जैसे पत्नी पीड़ित व्यक्ति अगर मिर्च धनियां अगर पैसे देकर खरीद कर घर ले गया  तो बाई  गाड़ हमेशा के लिए सब्जी खरीदने में,  मै फेल हो जाऊंगा,  ना रे  बाबा ना धनियां मिर्च तो डाल दें थैले में तभी घर जाऊंगा ।और भाई शर्मा तुम भी आ गए सब्जी लेने अब वर्माजी सब्जी की दुकान पर आए हे तो सब्जी ही लेंगे  हमने पास पहुंच कर चुटकी ली भाई वर्मा जी आज तो सालन जोरदार पकेगा ।
वाह शर्माजी आप भी ….
नहीं प्याज टमाटर नहीं, बस लोकी लेने आया था ।
सब्जी वाले भैयाजी एक लोकी और पचास ग्राम मिर्च और सौ ग्राम धनियां देना जरा ।  शर्मा जी जेब में जो समाय वहीं अपने घर आए ।  भाग्यशाली हो भाई शर्मा जी
वर्मा जी  को अपने थैले में धनियां मिर्ची मुंह चिढ़ाते लगे बेचारे धीरे से सरक लिए ।
दुकानदार दार मिर्ची तोल  ही रहा था कि दुकान पर एक सजी धजी महिला आई  मिर्ची हटाकर प्याज पलड़े में चढ़ा दी और दो किलो टमाटर तुलवाने लगी एक हाथ से धनियां की गुच्छी उठाई थैले में डाल लिया  मिर्च की मूठ्ठी भरी और थैले में डाल लिया  दुकानदार से बोली मेरे खाते में लिख लेना ये सब सब्जी घर पहुंचा देना  टामी की रस्सी पकड़े इठलाती हुई निकल गई। साहब पैसे वाले लोग ही धनियां मिर्च मुफ्त में मांगते हैं बाबूजी कुछ कह भी नहीं सकते ग्राहक रूठने का  डर जो है ।  हम ठगे से खड़े मिर्ची तुलते हुए सोच रहे थे पैसे देकर भी चीज के लिए इंतजार करना पड़ रहा है वाह री दुनियां गजब तेरे लोग फिर से दिमाग में गाने की पंक्ति घूमने लगी घर से निकलते ही ……कुछ कुछ दूर चलते ही
एक उदाहरण हो तो गिनाऊं ऐसे फनी लोग पग पग पर  मिल जाते हैं

अर्विना गहलोत

जन्मतिथि-1969 पता D9 सृजन विहार एनटीपीसी मेजा पोस्ट कोडहर जिला प्रयागराज पिनकोड 212301 शिक्षा-एम एस सी वनस्पति विज्ञान वैद्य विशारद सामाजिक क्षेत्र- वेलफेयर विधा -स्वतंत्र मोबाइल/व्हाट्स ऐप - 9958312905 [email protected] प्रकाशन-दी कोर ,क्राइम आप नेशन, घरौंदा, साहित्य समीर प्रेरणा अंशु साहित्य समीर नई सदी की धमक , दृष्टी, शैल पुत्र ,परिदै बोलते है भाषा सहोदरी महिला विशेषांक, संगिनी, अनूभूती ,, सेतु अंतरराष्ट्रीय पत्रिका समाचार पत्र हरिभूमि ,समज्ञा डाटला ,ट्र टाईम्स दिन प्रतिदिन, सुबह सवेरे, साश्वत सृजन,लोक जंग अंतरा शब्द शक्ति, खबर वाहक ,गहमरी अचिंत्य साहित्य डेली मेट्रो वर्तमान अंकुर नोएडा, अमर उजाला डीएनस दैनिक न्याय सेतु