जी चाहता है…
ना कुछ चाहूँ
ना किसीको चाहूँ
सबकुछ छोड़कर
जोगी बन जाऊँ
जी चाहता है….
ना किसीकी चिंता
ना किसीकी फ़िक्र
ना किसीकी याद
ना किसी का ज़िक्र
सभी को भूल जाऊँ
जी चाहता है….
प्यार का बंधन
रोज़ी और धंधा
मृत्यु की चिंता
जीवन का फंदा
सभी को बिसराऊँ
जी चाहता है….
घर को छोड़ूँ
द्धार को छोड़ूँ
दोस्ती दुश्मनी
परिवार को छोड़ूँ
हरिद्वार में जाकर
धूनी रमाऊं
जी चाहता है….
चाहत हज़ारों
चाहत अनेकों
चाहत को जीतो
चाहत को हारो
हर चाहत को अब
मैं जीत जाऊँ
जी चाहता है….
विकारों को तज के निर्विकार भाव से
शिव की सृष्टि, शिव हो जाऊँ
जी चाहता है…..
— रजनी त्रिपाठी