गीत/नवगीत

रूठे हुए हैं क्यों

ख्वाबों के सारे रंग वो झूठे हुए हैं क्यों

शय सारे मेरे नाम से रूठे हुए हैं क्यों

क्यों बहारें एक अर्से से यहां आती नहीं

ये नजारे मन को मेरे जाने क्यों भाती नहीं

बारिश में भी वो पहले सी फुहाडे़ं अब नहीं

सागर में सिर्फ लहरें हैं कोई किनारे अब नहीं

सूरज भी तप रहा है बहुत चांद भी उदास है

गगन वीरान तारे भी टूटे हुए हैं क्यों

शय सारे मेरे नाम से रूठे हुए हैं क्यों

दरख़्त सारे सूखते धरा लगे कि प्यासी है

पंछियों के मन में भी छायी एक उदासी है

ठहरी हुई हैं नदियां भी पर्वत बड़ा खामोश है

औरों को लाते होश में थे वे सभी बेहोश हैं

खुद की खबर न मिल रही बेखबर हुए हैं हम

भाग्य जाने मेरे ही फूटे हुए हैं क्यों

शय सारे मेरे नाम से रूठे हुए हैं क्यों

 

विक्रम कुमार

मनोरा, वैशाली

विक्रम कुमार

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