कविता

है कोई जवाब

है कोई जवाब

तुम कहते हो
आजकल बहुत बढ़ गई है बेशर्मी
शर्म हया तक बेच खाई है
नहीं रह गई है आँखों की शर्म
क्यों निकलती हैं अकेली वे
उनका चाल-चलन ही बिगड़ गया है
फटी हुई जिन्स पहने
तंग कपड़ो में
जिस्म की नुमाइश करती
नारी सुलभ संस्कार विहीन
गलत तो वे ही हैं
आधुनिकता के नाम पर
देर रात तक घरों से गायब रहना
दोस्तों के साथ मटरगश्ती करना
फिर कैसे रूकेंगे दुष्कर्म
पुरूष है फिसलेगा ही
लेकिन तुम्हारे पास
क्या जवाब है
मेरे प्रश्नों का!
वह तो अबोध बालिका ही थी
जिसे नोंच खसोट डाला
वहशी दरिंदे ने
और मार भी डाला
उस अबोध को
जिसे खुद ही नहीं मालूम
अपने जनांगो के खेल
मल-मूत्र त्यागने के अलावा
उसे क्या पता यौनाचार
क्या पहनना-ओढ़ना
क्या होती है आँखों की शर्म
कैसी और क्यों होती है आँखों की शर्म
किसके साथ घर से बाहर जाना
और किसके साथ घर में रहना
क्या गुनाह है उसका मासूम होना
या फिर सभी पर भरोसा करना
तुम जवाब दो
तुम्हें जवाब देना ही होगा
दुष्कर्मियों, हैवानों वहशियों के पक्ष में
कहने को अब भी कुछ है
तुम्हारे पास!

*डॉ. प्रदीप उपाध्याय

जन्म दिनांक-21:07:1957 जन्म स्थान-झाबुआ,म.प्र. संप्रति-म.प्र.वित्त सेवा में अतिरिक्त संचालक तथा उपसचिव,वित्त विभाग,म.प्र.शासन में रहकर विगत वर्ष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण की। वर्ष 1975 से सतत रूप से विविध विधाओं में लेखन। वर्तमान में मुख्य रुप से व्यंग्य विधा तथा सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर लेखन कार्य। देश के प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में सतत रूप से प्रकाशन। वर्ष 2009 में एक व्यंग्य संकलन ”मौसमी भावनाऐं” प्रकाशित तथा दूसरा प्रकाशनाधीन।वर्ष 2011-2012 में कला मन्दिर, भोपाल द्वारा गद्य लेखन के क्षेत्र में पवैया सम्मान से सम्मानित। पता- 16, अम्बिका भवन, बाबुजी की कोठी, उपाध्याय नगर, मेंढ़की रोड़, देवास,म.प्र. मो 9425030009