कथनी
कथनी
“चरण स्पर्श सर,मैं आपका शुरू से ही प्रशंसक रहा हूँ।जब से होश संभाला है और साहित्य में रूचि जागृत हुई है,आपकी कहानियाँ और उपन्यास पढ़ता आया हूँ।शायद ही ऐसी कोई आपकी रचना होगी जो मैंने नहीं पढ़ी होगी।आपने अपनी रचनाओं में गरीबों, शोषितों, पीड़ितों के हक में ही लिखा है।मुझे हमेशा आपकी नई रचनाओं का इंतजार रहता है।मेरे धन्य भाग्य हैं जो आप जैसी हस्ती के दर्शन लाभ हो गए।”
” अरे भाई हम तो साधारण आदमी है।हाँ,यह बात तुमने ठीक कही कि हम आम आदमी के लिए ही लिखते हैं। मुझे बहुत तकलीफ पहुँचती है जब मैं किसी के साथ अन्याय होते देखता हूँ।गरीबों,शोषितों की आवाज ,मैं अपने लेखन के माध्यम से ही तो उठाता आया हूँ। तुम बताओ यहाँ पहुँचने में कोई परेशानी तो नहीं हुई।”
“नहीं सर ,आपसे पहले ही अपाइंटमेंट ले लिया था इसलिए कोई खास नहीं।बस बाहर गेट पर जरूर थोड़ा इंतजार करना पड़ा। चौकीदार उस व्यक्ति को समझाने में लगा हुआ था जिसे कल आपके यहाँ से नौकरी से निकाला गया था।वह बता रहा था कि किसी छोटी सी बात पर आपके बेटे ने उसकी पिटाई कर दी थी और नौकरी से निकालने पर उसका एक माह का हिसाब भी नहीं किया था। बाहर वह तो अड़ा ही हुआ था अपना हिसाब करवाने के लिए, लेकिन जैसे तैसे समझा-बुझाकर चौकीदार ने उसको रवाना कर दिया , तब जाकर मुझसे चौकीदार मुखातिब हुआ और मुझे बंगले के अंदर आने दिया।”
अरे हाँ,वह गोविंद बहुत ही मुँहजोर था और लालची भी बहुत था।बार बार तनख्वाह बढ़ाने की बात करता रहता था और फिर घर पर किसी न किसी की बीमारी का बहाना बनाकर एडवांस भी मांगता रहता था।उसके पूरे घर का ठेका हमने थोड़े ही ले रखा था,तंग आ गए थे हम लोग और इसीलिए निकालना भी पड़ा।छोटे लोग हैं और उनकी मानसिकता भी छोटी ही होती है।चलो छोड़ो, क्या लोगे, चाय या कॉफी!”