गले गले तक डूबे हैं सनम
गले- गले तक डूबे हैं सनम
कुछ लोग जो खाली हाथ रह जाते हैं लेकिन फिर भी बहुत कुछ पाना चाहते हैं, वे हमेशा भरे हाथ वालों के गले पड़े रहते हैं जबकि कुछ लोग नहीं चाहते हैं कि कोई उनके गले पड़े,तब सोचने में आता है कि गले पड़े महबूबा तो क्या करे महबूब , जोड़ी कैसे जमेगी, फिर भी मजबूरी में उन्हें गले लगाना ही पड़ता है और जोड़ी जमाना पड़ती है किन्तु वे नहीं जानते कि आजकल जमाना ऐसा नहीं है कि हर किसी पर भरोसा कर लिया जाए क्योंकि हर कोई गले-गले तक यानी आकंठ डूबा हुआ है किसी न किसी झमेले में,किसी न किसी घोटाले में,ऐसे में कब गले लगा व्यक्ति पीठ में खंजर घोंप दे,भरोसा नहीं। इतना सब जानते-बूझते भी लोग समझदारी छोड़कर फरेबियों को गले लगा लेते हैं और बाद में शिकायत करते फिरते हैं कि हमें तो धोखा मिला है।
प्रेम भाव से कोई आकर गले मिले तब तो बात समझ में आती है,गलबहियाँ डाल देंगे किन्तु स्वार्थ के वशीभूत कोई गले मिलता है तो मन बहुत कचोटता है,यह स्थिति व्यक्ति को निराशा के भंवर में ले जाती है और उसे लगता है कि ऐसे व्यक्ति का गला ही रेत दें। स्वार्थी तो अपना स्वार्थ पूरा कर लेता है लेकिन यह भी देखा गया है कि दोनों ही पक्ष स्वार्थ की खातिर गले मिलते हैं।जब एक दूसरे को धोखा देते हैं तो परस्पर दोषारोपण करने में भी कहाँ पीछे रहते हैं जबकि वे अपने गिरेबान में नहीं झांकते बल्कि गला फाड़-फाड़कर एक दूसरे को दोषी करार देने में अपनी सम्पूर्ण उर्जा खपा देते हैं।एक कहता है कि उसने हमारा गला घोंटा है तो दूसरा कहता है कि उसके साथ रहने में हमारा गला घुट रहा था।
जबतक स्वार्थ बने रहते हैं तबतक तो गले लगते रहते हैं और गले का हार बने रहते हैं,एक दूसरे को गलबहियाँ डाले रहते हैं लेकिन जहाँ हितों के टकराव शुरू होते हैं, एक-दूसरे के गले काटने में जुट जाते हैं। कोई गला झुकाना नहीं चाहता बल्कि बातों को,मुलाकातों को एक-दूसरे के गले मढ़कर गले पर सवार होना चाहते हैं।जब प्राण गले तक आने लगते हैं तो गरदन झुका देते हैं।वरना तो गरदन पर छुरी फेरने में लगे ही रहते हैं।बहरहाल अभी तो गले पड़ने के दिन है,गले मिलने के दिन हैं। वरना तो गरदन पर छुरी फेरने में लगे ही रहते हैं।यदि सामने वाला बलशाली दिखाई दे जाए तो पीछे हटने में भी देर नहीं करते हैं,कहते फिरते हैं कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे!