धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

चर्च का घिनौना चेहरा और मिडिया

क्या आपको बालीवुड की वे फिल्मे याद हैं जिनमे फादर को दया और प्रेम का मूर्तिमान स्वरूप दिखाया जाता था तो हिन्दू सन्यासियों को अपराधी. जो मिडिया आशाराम पर पागल हो गया था वह आज चुप है.

केरल की नन सिस्टर लूसी कलाप्पुरा ने अपनी आत्मकथा लिखी है। इन्होंने ही बलात्कार आरोपित पादरी फ्रैंको मुलक्कल के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई थी। सिस्टर लूसी की पुस्तक के कुछ अंश एक मलयालम पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित किए गए हैं। इसमें बताया गया है कि साइरो-मालाबार चर्च में उनका कैसा अनुभव रहा? ईसाई संस्थाओं द्वारा संचालित प्राइवेट स्कूलों में पादरियों द्वारा क्या गुल खिलाए जाते हैं, सिस्टर लूसी की पुस्तक में इसके कई उदाहरण मिलेंगे। पादरी और बिशप अपने पदों का दुरूपयोग करते हुए ननों के साथ जबरदस्ती कर यौन सम्बन्ध बनाते हैं। वो इसके लिए कई ननों की जबरन सहमति भी लेते हैं।
सिस्टर लूसी ने लिखा कि कॉन्वेंट्स में जवान ननों को पादरियों के पास उनके ‘यौन सुख’ के लिए भेजा जाता था। वहाँ वो सभी ननें घंटों नंगी खड़ी रखी जाती थीं। वो लगातार गिड़गिड़ाती रहती थीं लेकिन उन्हें जाने नहीं दिया जाता था। सिस्टर लूसी की आत्मकथा जल्द ही प्रकाशित होगी।

फरवरी मे वेटिकन में कैथोलिक पोप के नेतृत्व में 2 दिन की मीटिंग हुई जिसका मुख्य एजेंडा चर्च के पादरियों द्वारा किए गए बाल शोषण के विरुद्ध निर्णय लिया गया.
इस मीटिंग के अन्त में पोप ने अपराधियों को दण्डित करने या करवाने की कोई बात नहीं की. आश्चर्य यह है कि भारतीय मिडिया ने इसपर अधिक ध्यान नहीं दिया या जान बूझ कर अनदेखा कर दिया. अगर निष्पक्ष भावना से देखा जाए तो यह केवल मामले को दबाने की कोशिश है.

सन् 2009 में आयरलैंड में, विशेष सरकारी आयोगों द्वारा वर्षों के कार्यों के बाद, डबलिन महाधर्मप्रांत में स्कूल प्रणाली में रयान रिर्पोट एवं बाल दुराचार पर मर्फी रिपोर्ट प्रकाशित किया गया था।
मई में आई पहली रिपोर्ट के अनुसार 1930 से 1990 के दशक तक कैथोलिक गिरजे के कर्मचारियों द्वारा हज़ारों बच्चों को पीटा गया, सर मुंडवाया गया, आग या पानी से यातना दी गई, और बलात्कार किया गया. उन्हें नाम के बदले नम्बर दिया गया था. कभी कभी तो वे इतने भूखे होते थे कि कूड़ा खाते थे.
नवम्बर में आई मर्फ़ी रिपोर्ट में सामने आया कि किस तरह चर्च ने दशकों तक बर्बर कारनामों को व्यवस्थित रूप से दबाए रखा. चर्च नेतृत्व बदनामी के डर से चुप रहा तो सरकारी दफ़्तरों ने नज़रें फेर लीं. जनमत के बारी दबाव के कारण चार बिशपों को इस्तीफ़ा देना पड़ा. तीन इस्तीफ़ो पर पोप को अभी फ़ैसला लेना है. रिपोर्ट के अनुसार आर्कडियोसेज़ डब्लिन में 1975 से 2004 के बीच 300 बच्चों के साथ दुर्व्यवहार हुआ. इस बीच कम से कम 170 धर्माधिकारी संदेह के घेरे में हैं.

5 फरवरी 2014 ज़ारी अपनी रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र की बाल अधिकार समिति (सीआरसी) ने कहा कि वैटिकन को उन पादरियों की फ़ाइलें फिर से खोलनी चाहिए जिन्होंने बाल शोषण के अपराधों को छुपाया है ताकि उन्हें ज़िम्मेदार ठहराया जा सके.रिपोर्ट में कहा गया है कि वैटिकन ने अपराधों की गंभीरता को स्वीकार नहीं किया है और इसे लेकर समिति बहुत चिंतित हैं.
सितम्बर 2018 में जर्मनी में छपी जर्मनी में एक रिपोर्ट के अनुसार कैथोलिक चर्च में 1946 से 2014 के बीच 3,677 बच्चों का यौन शोषण हुआ. जर्मन बिशप कॉन्फ्रेंस के प्रमुख कार्डिनल मार्क्स ने पीड़ितों से माफी मांगी है.
जर्मन बिशप कॉन्फ्रेंस में रिपोर्ट पेश करते हुए कार्डिनल मार्क्स ने पीड़ितों से माफी मांगते हुए कहा, “लंबे समय तक चर्च ने यौन शोषण के मामलों को झुठलाया, नजरअंदाज किया और दबाया. इस विफलता और उसकी वजह से पहुंची तकलीफ के लिए मैं माफी मांगता हूं.” रिपोर्ट में कैथोलिक चर्च के पादरियों द्वारा बच्चों और किशोरों के यौन शोषण के मामले दर्ज किए गए हैं. मार्क्स ने कहा, “मैं नष्ट हुए भरोसे के लिए, चर्च के अधिकारियों द्वारा किए गए अपराधों के लिए शर्मसार हूं.”
रिपोर्ट के अनुसार 1946 से 2014 के बीच कैथोलिक चर्च के 1,670 अधिकारियों ने 3,677 नाबालिगों का यौन शोषण किया. रिपोर्ट के लेखकों ने जर्मनी के 27 डियोसेजे में 38,156 फाइलों का विश्लेषण किया जिसमें 1,670 अधिकारियों के मामले में नाबालिगों का यौन शोषण किए जाने के आरोपों का पता चला. इस अध्ययन का आदेश जर्मन बिशप कॉन्फ्रेंस ने ही दिया था. टीम का नेतृत्व मनहाइम के मनोचिकित्सक हाराल्ड द्राइसिंग की टीम कर रही थी
रिपोर्ट के अनुसार आरोपियों में 1429 डियोसेजे के पादरी थे, 159 धार्मिक पादरी थे और 24 डियाकोन अधिकारी थे. 54 फीसदी लोगों के मामले में सिर्फ एक का यौन शोषण का आरोप था जबकि 42 प्रतिशत कई मामलों के आरोपी थे. यौन शोषण के पीड़ितों में 63 फीसदी लड़के थे और 35 फीसदी लड़कियां. पीड़ितों में तीन चौथाई का चर्च और आरोपियों के साथ धार्मिक रिश्ता था. वे या तो प्रार्थना सभाओं में सेवा देने वाले थे या धार्मिक कक्षाओं के छात्र.
पुरी दुनिया में पादरी यौन शोषण के लिए बदनाम हैं परन्तु भारतीय मिडिया चुप है.