एक पत्र गाँधी के नाम
प्रिय बापू आप अमर थे! अमर हैं!और अमर रहेंगे! क्योंकि जो आपने कहा, जिया और गढ़ा, ‘सत्य ही ईश्वर है’ का जो मन्त्र आपने दिया और जो दूरदृष्टि आपके पास थी वो आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। आशा ही नही वरन पूर्ण विश्वास है कि जगत गुरू शंकराचार्य ने ‘ब्रह्म सत्यम् जगत मिथ्या’ का जो उद्घोष किया था उसके अनुकूल सत्य स्वरूपी ईश्वर के देश में आप सत्य कुटिया में सुखपूर्वक निवास कर रहे होंगे। जहाँ तक यहाँ का प्रश्न है- जी. एस. टी., बेरोजगारी, गरीबी की मार के बीच भी धारा 370 की समाप्ति, मुस्लिम बहनों को तीन तलाक के दारुण कष्ट से मुक्ति और चंद्रयान-2 की 90% से भी ज्यादा सफलता के कारण सब कुशल मंगल है। एक राज की बात आपको और बतानी है,बापू!जरा.. कान इधर तो लाना – आपका सच्चा उत्तराधिकारी देश में प्रकट हो चुका है इसलिये आप यहाँ की चिंता छोड़कर मस्त अपना प्रिय भजन ‘वैष्णव जन’ गाते रहो।।
बापू आपका आग्रही आचरण आपके स्वाभिमान का प्रतीक था। यह स्वाभिमान भारतीयता का स्वाभिमान था। इसलिये रहन-सहन, खान-पान, सामाजिक व्यवहार या राजनीति सभी में आप इस आग्रही आचरण को अपनाये रहे और इसी स्वाभिमान के कारण आपके धुर विरोधी भी ह्रदय से आपको सम्मान देते रहे। प्रिय बापू इस पत्र के माध्यम से मै आपको बता दूँ कि स्वयं को वैष्णव जन मानने का ये स्वाभिमान आज पुनः समाज में पुर्नजागरण का रूप ले रहा है और आप के आशीर्वाद से ये वैष्णव जन वही होंगे जो पीर-पराई जानेंगे, समझेंगे और दूर करेंगे।
बापू , आज से 100 वर्ष पूर्व जब अंग्रेज़ी का ज्ञान सम्भ्रान्त या प्रतिष्ठित होने का पैमाना हो गया था तब आपने मातृभाषा का आग्रह किया और कहा- ‘अगर मेरे हाथों मे तानाशाही सत्ता हो तो मै आज से ही विदेशी माध्यम से दी जाने वाली शिक्षा बन्द कर दूँ। मै पाठ्य पुस्तकों कि तैयारी का इंतजार नही करूँगा वे तो माध्यम के पीछे-पीछे आप चली आयेगी।’
1917 में भागलपुर में आपने कहा था कि मातृभाषा का अनादर माँ के अनादर के बराबर है और यदि हम मातृभाषा की उन्नति नही कर सके और यही मानते रहे कि अंग्रेजी के जरिये ही हम ऊँचे विचार प्रकट कर सकते है तो इसमें जरा भी शक नही कि हम सदा के लिये गुलाम बने रहेंगे। सच कहूँ बापू आपके कहे कथन की सच्चाई आज 100 वर्षो के बाद भी जस की तस है। आज जब आपका वीर सुपुत्र देश दुनिया के संभ्रांतशाली लोगो की सभा में अपनी मातृभाषा में कथन करता है तो हमारा सीना गर्व से फूल जाता है।
बापू स्वयं कर्मकाण्ड में आस्था रखते हुए भी आपने कभी धर्म को कर्मकाण्ड के दायरे में सीमित रखने वाले दृष्टिकोण से समझौता नही किया। सच तो ये है कि आपके कर्मकाण्ड का रूप अलग था। आपको ‘रामधुन’ प्रिय थी। प्रार्थना सभा में ‘रघुपति राघव राजा राम’ की धुन में आप लीन हो जाते थे। नरसी मेहता के भजन की दूसरी पंक्ति- ‘पर दुःख उपकार करे ते मन अभिमान न मानै रे।।’
न केवल आपकी प्रिय पंक्ति थी वरन आपके आचरण का अक्स भी थी। आपने अपने धार्मिक आचरण को सेवा का रूप दिया। इसीलिये तो आपको ईश्वर का ‘दरिद्रनारायण’ नाम सबसे अधिक प्रिय था। राजनीति में भी आध्यात्मिकता को आप जरूरी समझते थे क्योंकि आध्यात्मिकता नैतिकता का और नैतिकता सात्विक जीवन का आधार है। सात्विक विवेकशील होकर सदाचरण की प्रेरणा देती है और सदाचरण ही उत्तरदायित्व के निर्वहन में सहायक होता है। आपने सामाजिक विविधता को स्वीकार करते हुए ‘समरसता’ की भावना पर बल दिया। सो आज न केवल राजनीति वरन जीवन की मांग है।
बापू आपको जानकर निश्चित ही प्रसन्नता होगी कि आज आपके सच्चे शिष्य ने देश को स्वच्छ बनाने का अभियान सा छेड़ रखा है। मुझे भी खूब याद है कि सफाई करने में आपको कितना आनन्द आता था। आप तो यहाँ तक कहते थे किसी भी देश के लोगों की सफाई की कसौटी यह है कि उनका शौचालय साफ है या नही। आप गर्व के साथ अपना परिचय ‘भंगी’ के रूप में देते थे। जब आपसे पूछा गया कि जेल में आप कौन सा काम करना पसन्द करेंगे?तो आपका तत्काल उत्तर था- ‘भंगी का काम।’ ‘सफाई कर्मचारी’ शब्द आप ही की देन है।
जब एक विदेशी ने आपसे पूछा कि यदि आपको एक दिन के लिये भारत का वायसराय बना दिया जाए तो आप क्या करेंगे? तो आपका उत्तर था- कि आप राजभवन के पास की भंगी बस्ती को साफ करेंगे, यही नही यदि पद दूसरे दिन भी बना रहे तो भी आप यही करना चाहते थे। तो मेरे प्यारे बापू स्वच्छता के प्रति आपका ये जूनून आज एक अभियान तो है लेकिन आचरण में उतारना हमे आपसे सीखना है। क्योकि जैसा कि भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का मानना है कि हम भारतीयों में व्यक्तिगत स्वच्छता का संस्कार तो जन्मजात है पर सामाजिक स्वच्छता हमे सीखनी होगी।
बापू आपका वो साधारण सा दिखने वाला व्यक्तित्व, साधारण वेश भूषा, लाठी टेक कर चलना आम जन के कितना करीब था! लेकिन दुःख इस बात का है, कि आज हर व्यक्ति VIP बनना चाहता है सामान्य तो कोई रहना ही नही चाहता हर कोई अपने लिये एक अदद कुर्सी चाहता है। आज हर तरफ नाराजगी है, गुस्सा है, क्षोभ है, दुःख है आगे निकल जाने की उत्तेजना है पीछे रहे जाने की निराशा है यदि कुछ नही तो हार्दिक प्रसन्नता। बापू आज जन जन को आप सा सरल व्यक्तित्व और आप सा मृदुल हास्य चाहिये। आपका वो दिल से हँसना सबको सीखा दो बापू।
बापू सच तो यह है आप वो एहसास हैं जो जन जन की, देश की साँसों में महक रहे है। और किसने बोला…
किसने बोला तुम चले गए,
जन जन मे जीवित हो बापू!
हर मन में जीवित हो बापू।
अमर शब्द के बन पर्याय,
तुम अमर रहो, तुम अमर रहो।
अपना ख्याल रखना बापू…..।
— अंजू अग्रवाल