कविता – गरीब
कुछ करना चाहता हूँ,
पर कुछ कर नही पाता हूँ ।
आगे बढ़ना चाहता हूँ,
पर आगे बढ़ नही पाता हूँ ।
कोई मदद करना चाहे,
तो मदद ले नही पाता हूँ ।
किसी से मदद मांगना चाहता हूँ,
पर शरमा जाता हूँ ।
अच्छे जगहों पर घूमना चाहता हूँ,
पर जेब खाली पाता हूँ ।
बड़े लोगो को देखता हूँ,
तो अपने नसीब को कोषता हूँ ।
अच्छा-अच्छा भोजन चाहता हूँ,
पर कभी-कभी भूखे पेट ही सो जाता हूँ ।
बड़े-बड़े अमीरों को देखकर,
मैं भी अमीर कहलाना चाहता हूँ ।
पर अपने आर्थिक परेशानियों के कारण,
मैं सिर्फ गरीब कहलाता हूँ ।
— सौरभ कुमार ठाकुर