जैसा कर्म वैसा फल – मृत्युदंड
सामाजिक व्यवसाथा में जुर्म का कोई स्थान नही है चाहे वह किसी प्रकार का क्यूँ न हो?सभी जुर्म के लिए संविधान में दंड का प्रावधान है जो विभिन्न संस्थाओ द्वारा जुटाये गये सबूत और रिपोर्टो के आधार पर किया जाता है, लेकिन हाल के वर्षों में जिस प्रकार से रेप की क्रूरतापूर्ण धटनाएँ का वीभत्स रूप देखने को मिला है शायद सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि ऐसी घटनाओं पर त्वरित और सख्त सजा दी जाय शायद न्याय भी यही कहता है।आखिर आधी आबादी पर ही क्रूर मानसिकता विक्षिप्त मानसिकता वाले लोग अपना शिकार क्यों बनाते है क्या सरकार और समाजशास्त्रीयों ने इस पर भी कभी अध्ययन किया।आज महिलायें असहज है तो क्यू? आखिर इसका इलाज तो करना होगा सामाजिक परिवेश को बेहतर बनाने के लिए सबसे पहले इन्टरनेट, चैनलो, धारावाहिक,विज्ञापनो और भी कई ऐसे स्त्रोत है जहाँ अश्लीलता खुल के परोसी जाती है जिस पर एक आचार संहिता के तहत कठोर नियम होनी चाहिए और वैसे धिरावाहिक या शार्ट फिल्म को बैन करना चाहिए जो अश्लीलता परोसते हैं।और ऐसे धारावाहिक ही दिखाई जाय जिसमें औरतो का सम्मान हो ज्ञानवर्द्धक हो ताकि वैसे लोग भी प्रेरणा ले सकें जो मानसिक तौर पर विक्षिप्त हो रहे हैं।हलांकि सभी की गाईड लाईन हमारे संविधान में उपलब्ध हैं लेकिन शायद और सख्त होने की जरूरत अभी बाकी है।वैसी चीजे जो पूरे समाज को गंदा करती हो उन्हें बार बार दिखाना विभिन्न माध्यमो से खतरनाक साबित हो रहा है।
आज के इस डिजिटल युग में मीडिया की भूमिका भी अहम हो गयी है जिसे अब और सख्त होना होगा विशेषकर सामाजिक जागरण को लेकर उन्हें समाज को जगाना होगा। निष्पक्ष निडरता साहस और स्पष्टता के साथ महिलाओ की अहमियत और सम्मान उन विक्षिप्त मानसिकता वाले लोगो तक संदेश पहुँचाने का ससक्त मध्यम बनना होगा शायद वे ऐसा कर भी रहे लेकिन उन्हें लगातार करने की जरूरत है।
आये दिन लूट चोरी बालात्कार की ह्रदय विदारक घटनाओं ने देश और मानवता को घृणित किया है जिसकी कल्पना से रूह तक कांप जाती है।हाल में घटित काण्ड,ऐसी जघन्यता आखिर समाज में रहने वाले लोग कैसे और क्यूँ करने लगे हैं इतनी कटुता क्यों उमड रही है? यह राक्षसी प्रवृत्ति का खात्मा बहुत जरूरी है। कुछ लोग इसे बढते मोबाइल का प्रयोग मानते है तो कुछ लोग छोटे कपडो का चलन पर जहा तक मोबाइल का सवाल है उसमे अच्छी और सकारात्मक सोच भी है जैसी सोच होगी वैसे आप यूज करेंगे जहां तक कपडो का सवाल है तो बच्चीयो मे कौन सी अश्लीलता दिखती है यह तो ओछी और विकृत मानसिकता के कारण है।
विकृत और विक्षिप्त मानसिकता वाले लोगो की हमारे देश मे अत्यधिक वृद्धि हुई है शाट काट से धन कमाना और ऐय्याशी करना उनका मुख्य उद्देश्य हो गया।दूसरा लड़कियो का लड़को से हर क्षेत्र में आगे निकलना और स्वावलम्बी होना ऐसी मानसिकता को जन्म देने लगा है जिससे द्वेष भरा एक माहौल समाज में बनता जा रहा है।आज सभी क्षेत्र में लडकियां अच्छा करने लगी है।जबकि लड़के वेरोजगार और पिछडते जा रहे है उनकी लगन एकाग्रता और सहनशीलता अब देश का परचम लहरा रही है।अगर ऐसे में विक्षिप्त विकृत मानसिकता जन्म लेता है तो इसकी क्रूरता दिखाई पड़ने लगती है जो आये दिन दिख भी रहा है।
समाज में अपराध की कोई जगह नही है अपराधिक प्रवृति और सोच अब क्रूरता में परिवर्तित होने लगी है।एक दूसरे से घृणा, द्वेष करना और अपनी महत्वाकंक्षा को पूरा करने के लिये लोग घृणित और क्रूरता पर उतरने लगे हैं ।इस सोच को बदलना होगा। भारत एक सभ्य सांस्कृतिक और सहिष्णु राष्ट्र रहा है जैसा कि हम सभी जानते हैं किसी भी तरह की क्रूरता हो समाज राष्ट्र और परिवार के लिए खतरनाक है। चाहे वह भीड़ में किसी को मारना हो, डायन बताकर अभद्रता और क्रूरता प्रदर्शित करना हो,तेजाब फेककर जलाना हो, दहेज दानवों द्वारा किया गया अपराध हो बदचलन बताकर की गयी क्रूरता हो या फिर बलात्कार समाज और लोग बर्दाश्त नही करते लेकिन आये दिन घटित होती है।यह क्रूरता तो अब घरों में भी प्रवेश करने लगी है।सरकारें या समाज की नीतियां तो हैं संविधान में दंड का प्रावधान भी है लेकिन घटनाओ को रोक पाने में सफलता नही मिलती ।सवाल हैं ऐसा क्यों होता है ?घटना घटने के बाद तर्क वितर्क जाँच अधिनियम को खंगाला जाता है जबकि सरकार के पास मौजूद तंत्र और एजेंसियाँ समय पर त्वरित सावधानी के साथ कार्य करे तो किसी भी घटना को रोका जा सकता है यह उनकी नैतिक जबाबदेही भी है । किसी निर्दोष की जान माल की रक्षा करना सरकार और वहाँ के प्रशासन की जिम्म्वारी होती है लेकिन ऐसा संभव नही हो पाता और लोग ना चाहते हुए भी मौत के आगोश मे समा जाते है जिसकी शिकार सबसे ज्यादा महिलाएँ है, फिर मुआवजो का दौर शूरू होकर वही समाप्त हो जाता है, आखिर ऐसा कब तक चलता रहेगा क्या परिवर्तन सिर्फ सत्ता का होगा या फिर व्यवस्था की। जरूरत तो व्यवस्था परिवर्तन की है चाहे सरकारे किसी की भी हो। इस क्रूरता और अपराधिक सोच को बदलना होगा। किसी भी तरह का अपराध समाज के लिए विध्वंसक साबित होती रही है। ऐसे लोगो के खिलाफ वातावरण बनाना हमारा एक उद्देश्य या कार्य हो सकता है, जिसके लिए समाज को नैतिक जबाब देही के तहत कार्य करना आवश्यक है।ऐसी मानसिकता को रोकने की आवश्यकता है।
भारत की वैचारिक यात्रा ईश्वर सत्य से ही, शुरू होती है। यात्रा एक नया मंजिल ढूंढती है समाज से,सरकार से,जनप्रतिनिधि से तमाम व्यवस्थाओं से जो लोगो के लिए कार्य करते हुए उद्घोष करे ऐसी घटनाओ की सिर्फ निंदा नही घटने से रोकेगे तभी सही मायने में सत्य ही ईश्वर है होगा।लेकिन आजकल समाज में भी सत्य कहने और सत्य सुनने वाले दोनों की कमी हो गयी है जो अच्छे संकेत नही देते।
राजनेताओ के मौन होने के कारण हो सकते हैं लेकिन समाज की प्रतिक्रिया आपेक्षित होती है जैसे हैदराबाद में दिखी।समाज अगर प्रतिक्रिया विहीन हो जाय तो पतन होना स्वभाविक है बढ़ती घटनाओं पर मौन रहने से भी यह हमें नहीं छोड़ने वाली। बदलते परिवेश के साथ समाज को कलान्तर की गौरवशाली सभ्यता-संस्कृति,परंपराओं, संस्कार,स्वाभिमान को बचाने के लिए कार्य करने की जरूरत है।विशेषकर बालात्कार जैसी वीभत्स घटनाओ पर तभी मृत्युदंड दिला पाएँगे उन गुनाहगारो को जो समाज मे रहकर बूरी नजर बनाये रखते हैं।
— आशुतोष