कविता

मेरे शब्द 

जंग अपनों से अपने आप ही हारी है मैंने,
घर टूटने का दर्द, घर टूटने से पहले महसूस किया है मैंने |
मेरी ये शोहरतें खरीदी नहीं, श्रम से कमाई हैं –
मौत की दस्तकें बड़े नजदीक से देखी हैं मैंने ||
मेरा प्यारा भारत करता है हाहाकार,
बेटियों पर अब बंद करो अत्याचार |
देवों का देश बन गया नरक –
चारों ओर मचा बस चीत्कार ||
निज राष्ट्र की खातिर बिन मौत मर जाना,
आत्मसम्मान हित हंसते-हंसते सूली चढ़ जाना |
इससे बड़ा कोई कर्म नहीं , कोई धर्म नहीं –
नश्वर देह से मर कर सदियों तक अमर हो जाना ||
माँ से बड़ा कोई भगवान नहीं हो सकता,
ममता से न पिघले, ऐसा कोई पाषाण नहीं हो सकता ?
मंदिर – मस्जिद में न भटक मनुज –
माँ से ज्यादा कृपा बरसादे ऐसा कोई देव नहीं हो सकता ?
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा 

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111