मेरे शब्द
जंग अपनों से अपने आप ही हारी है मैंने,
घर टूटने का दर्द, घर टूटने से पहले महसूस किया है मैंने |
मेरी ये शोहरतें खरीदी नहीं, श्रम से कमाई हैं –
मौत की दस्तकें बड़े नजदीक से देखी हैं मैंने ||
मेरा प्यारा भारत करता है हाहाकार,
बेटियों पर अब बंद करो अत्याचार |
देवों का देश बन गया नरक –
चारों ओर मचा बस चीत्कार ||
निज राष्ट्र की खातिर बिन मौत मर जाना,
आत्मसम्मान हित हंसते-हंसते सूली चढ़ जाना |
इससे बड़ा कोई कर्म नहीं , कोई धर्म नहीं –
नश्वर देह से मर कर सदियों तक अमर हो जाना ||
माँ से बड़ा कोई भगवान नहीं हो सकता,
ममता से न पिघले, ऐसा कोई पाषाण नहीं हो सकता ?
मंदिर – मस्जिद में न भटक मनुज –
माँ से ज्यादा कृपा बरसादे ऐसा कोई देव नहीं हो सकता ?
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा