कविता

मौसमे इश्क़ सा

कर गुप्त श्रृंगार, उल्लसित फुहार
धम-धम-धमाक दहलाया है
उमड़-घुमड़ मेघों के बीच
सावन फिर आज गहराया है।
तड़-तड़-तड़ित विद्युत जनित
चम-चम-चमात चमकाया है
है नेह थकित विश्वास अडिग
सावन कृषकों को भाया है।
घर-घर-घरात,थप-थप-थपाक
सूखी धरती की प्यास बुझाया है
संगीत सुरमई अपनी धुन में
सावन फिर आज सुनाया है।
कड़-कड़-कड़ात, छम-छम-छमात
रिमझिम-रिमझिम बरसात गिरे
गुप्त निक्षिप्त धरा में बीजों ने
सावन में उत्साह दिखाया है।
सन-सन-सनात,थर-थर-थरात
विश्वास अद्भुत दिलाया है
न हिंदी की कविता न उर्दू अल्फाज
सावन ने मौसमे इश्क़ दिखाया है।
छन-छन-छनात,हर-हर-हरात
संग्राम जीत ज्यूँ आया है
ओढ़ चुनर धानी धरा में
सावन सोंधी मुस्कान लाया है।
लुक-छुप-छूपात भास्कर दिनरात
धरती आभा देख मुस्काया है
चाँद हिंडोला धरती की देखे
सावन ने उल्लास जगाया है।
— स्पृहा मिश्रा “असीम”