सार_छंदाधारित_गीत – मौन विहग है कब से
ठूंठ वृक्ष है रहित पात से ,सन्नाटा है छाया ।
हरियाली का चीर हरण कर ,पतझड़ है इतराया ।।
नयन नीर भर खड़ा अकेला ,साथी छूटे जबसे ।
किसको अपनी दशा दिखाए ,मौन विहग है कबसे ।
कौन यहाँ अब सुने हृदय की ,कैसा दृश्य दिखाया ।
हरियाली का चीर हरण कर ,पतझड़ है इतराया ।।
सुमन विहँसते देख तितलियाँ ,पायल छनकाती थीं ।
और मधुप की मनुहारों से ,कलियां शरमाती थीं ।
झूमा करती हरित लताएं ,मन रहता भरमाया ।
हरियाली का चीर हरण कर ,पतझड़ है इतराया ।।
नही हुआ हूँ पर निराश मैं ,मगर ज़रा उखड़ा हूँ ।
ढूंढ ही लूंगा उन अपनों को ,जिनसे मैं बिछड़ा हूँ ।
तृण चुन नीड़ बनाऊँ फिर से ,मन विश्वास जगाया ।
हरियाली का चीर हरण कर ,पतझड़ है इतराया ।।
— रीना गोयल