गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

कुछ मुहब्बत कुछ शरारत और कुछ धोका रहा ।
हर अदा ए इश्क़ का दिल तर्जुमा करता रहा ।।

याद है अब तक ज़माने को तेरी रानाइयाँ ।
मुद्दतों तक शह्र में चलता तेरा चर्चा रहा ।।

पूछिए उस से भी साहिब इश्क़ की गहराइयाँ ।
जो किताबों की तरह पढ़ता कोई चहरा रहा ।।

वो मेरी पहचान खारिज़ कर गया है शब के बाद ।
जो मेरे खाबों में आकर गुफ्तगू करता रहा ।।

साजिशें रहबर की थीं या था मुकद्दर का कसूर ।
ये मुसाफ़िर रहगुज़र में बारहा लुटता रहा ।।

वो परिंदा क्या बताएगा फ़लक की दास्ताँ ।
जो कफ़स के दरमियाँ हालात से लड़ता रहा ।।

तब्सिरा तू कर गया जख्मों पे मेरे किस तरह ।
जब तेरे रुख़सार पर कायम तेरा पर्दा रहा ।।

तीरगी को रोकना मुमकिन कहाँ था दोस्तो ।
स्याह शब के वास्ते जब शम्स ही ढलता रहा ।।

आपकी तिरछी नजर यूँ कर गयी मुझ पर असर ।
उम्र भर मैं बेख़ुदी में बस ग़ज़ल कहता रहा ।।

— डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

शब्दार्थ
अदाए इश्क – इश्क़ की अदा, तर्जुमा – अनुवाद ट्रांसलेशन, रानाइयाँ – सुंदरता , शब – रात , गुफ्तगू – बातचीत , रहबर – राह बताने वाला गाइड , रहगुज़र – रास्ता , बारहा – बार बार , फ़लक – आसमान , कफ़स – पिजरा , दरमियाँ – के बीच , तब्सिरा – कमेंट , रुख़सार – चेहरा , तीरगी – अंधेरा , स्याह, शब – काली रात , बेख़ुदी – खुद का ख्याल न रहना

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक [email protected]