स्वराज और सुराज
“स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे “-लौहपुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल के द्वारा उद्घोषित इस वाक्य ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा प्रदान की थी और आम मानस में इक नई ऊर्जा का प्रवाह किया था। प्रकृति का हर अव्यव स्वाधीनता से जीना चाहता है और मानव इस प्रकृति की सर्वश्रेठ कृति है अतः उसके लिए स्वाधीनता और भी जरूरी अंग है, जैसे कि साँस लेना और धमनियों में खून का प्रवाह होना। स्वराज की परिकल्पना लोमान्य बालगंगाधर तिलक और ऐनी बेसेंट के द्वारा चलाए गए होम रूल मूवमेंट से भी परिभाषित होती है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की ये पंक्तियाँ भी स्वराज की प्राथमिकता को दर्शाती हैं –
“छीनता हो स्वत्व कोई,
और तू त्याग-तप से काम ले ,
यह पाप है,
पुण्य है विच्छिन्न कर देना उसे ,
बढ़ रहा तेरी तरफ जो हाथ है ”
और भी
” जला अस्थियाँ बारी-बारी,
फैलाई जिसने चिंगारी,
चढ़ गए जो पुष्प-वेदी पर,
बिना लिए गर्दन का मोल,
कलम आज उनकी जय बोल ”
भारत को 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता प्राप्त हुई अर्थात अक+अस्त -अँधेरे का दुरागमन हुआ ,लेकिन यह बहस आज भी कई बार और कई जगहों पर सुनने को मिलती है कि क्या पिछले 77 सालों में वह सब हासिल हो पाया जिसकी परिकल्पना देश के स्वतंत्रता नायकों और वीरों ने की थी। क्या कई मायनों में ब्रिटिश हुकूमत की शासन आज से बेहतर थी ? क्या हम स्वतंत्रता को सही ढ़ंग से सम्भाल नहीं पाए और प्रजातंत्र कई टुकड़ों में बाँटा हुआ राजतन्त्र बन कर रह गया है ? क्या देश और राष्ट्र की सुनिश्चित परिभाषा से हम आज भी कोसों दूर है ? अरस्तू ने कहा था किसी भी राष्ट्र (नेशन स्टेट ) की सही परिभाषा यह है कि पूरी प्रजा किसी एक चीज़ से खुद को जोड़ कर देखती हो, देश की सीमा बिलकुल निर्धारित हो और देश की साक्षरता दर सौ प्रतिशत हो या इसके बहुत करीब हो। हम एक विकासशील राष्ट्र के रूप में आज भी इन परिधियों से खुद को काफी दूर पाते हैं। स्वराज प्राप्त कर लेना और उसको संचालित करना दोनों में ज़मीन-आसमान का फर्क नज़र आता है। भारत के साथ कई और राष्ट्र स्वाधीन हुए लेकिन पाकिस्तान, दक्षिण कोरिया ,म्याँमार आज एक फेल्ड नेशन (असफल राष्ट्र) के रूप में जाने जाते हैं। हम भिन्न होकर भी आज अपनी स्वाधीनता को बरकरार रख पाए हैं परन्तु जितना अपेक्षित था हमसे ,उससे काफी दूर खड़े नज़र आते हैं।
“उतरा कहाँ स्वराज ,
बोल दिल्ली तू क्या कहती है ,
तू तो रानी बन गई ,
वेदना जनता क्यों सहती है ,
किसने,किसके भाग्य ,
दबा रखे हैं अपने कर में
उतरी थी जो विभा ,
बंदिनी बोल हुई किस घर में ?”
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के परिदृश्य पर जब महात्मा गाँधी का उदय हुआ तो पहली बार आम नागरिकों को और स्त्रियों को आंदोलन से जुड़ने का मौका मिला। मजदूरों,खेतिहर,कृषकों कास्तकारों सबको अपने भाग्य के सूरज को उदय करने की किरण दिखी। महात्मा गाँधी केवल स्वतंत्रता और स्वराज की बात नहीं करते थे बल्कि उन्होनें पूरे संग्राम को जन-संग्राम में परिवर्तित किया और पहली बार सुराज की बात की। सुराज=सु +राज़ का अर्थ है अच्छा शासन। कुछ स्कूलों का मत है कि सुराज ,गैर-मुल्की शासक भी कर सकता है जैसे क़ि अकबर और शेर शाह सूरी और अपने शासक भी कई दफे कुशासन की मिशाल पेश करते हैं।पनामा पेपर्स, विकिलिंक्स के द्वारा कई राष्ट्रों में व्याप्त भ्रष्टाचार की पोल खुल गई ,सरकारें गिर गई और जनता परेशान हो गई। दक्षिणी अमेरिका में वेनेज़ुएला , मेक्सिको और अफ्रीका में दक्षिणी सूडान और ज़िम्बाबे अच्छी प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण होने के बावजूद आर्थिक संकट के दौर से गुज़र रहे हैं। अर्थवादी राष्ट्र मानव मूल्यों की वजह क्रोनी केप्टलिज़्म के शिकार नज़र आते हैं। जॉन रस्किन अपनी किताब “अन्टू डी लास्ट” में लिखते हैं -” कतार में खड़े सबसे अंतिम व्यक्ति को सबसे पहला अधिकार प्राप्त होना चाहिए।” महात्मा गाँधी ने स्वयं अपनी किताब “हिन्द स्वराज ” में जॉन रस्किन से प्रभावित होने की बात की है। महात्मा गाँधी के द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन ,भारत छोडो आंदोलन सब में इस सूक्ति का प्रभाव साफ़-साफ़ दिखता है। महात्मा गाँधी द्वारा चलाए गए सर्वोदय आंदोलन, दलितों को हरिजन के नाम से एक करने की कोशिश और आंदोलन में हर एक की भागीदारी और जिम्मेदारी इसी अवधारणा से प्रेरित है। कालान्तर में जे पी मूवमेंट भी अंतिम आदमी के अधिकारों की बात करता नज़र आता है।
महात्मा गाँधी ने कहा था -“मेरा कार्य तब तक सम्पूर्ण नहीं होता जब तक क़ि मैं हर गरीब के आँखों से आँसू नहीं पोंछ देता,उनकी यह बात उनके द्वारा दिए गए तिलिस्म में भी साफ नज़र आती है।
‘मैं आपको एक मंत्र देता हूँ। जब आपको शंका हो या फिर स्वार्थ भारी पड़ने लगे, आपको इसे आजमाना चाहिए। आप उस सबसे गरीब और कमजोर आदमी का चेहरा याद करें जिसे आपने देखा है। खुद से पूछिए, आप जो करने जा रहे हैं क्या उससे उनको कोई फायदा पहुँचेगा? क्या इससे उनका कोई भला होगा? क्या इससे उनके जीवन और भाग्य पर उनका नियंत्रण हो पाएगा? साफ शब्दों में कहें तो आप जो कदम उठाने जा रहे हैं क्या उससे भूखे और आध्यात्मिक रूप से भूखे मर रहे लाखों लोगों का भला होगा या नहीं? तब आप देखेंगे कि आपकी शंकाएँ भी दूर हो जाएँगी और स्वार्थ भी भारी नहीं पड़ेगा।” सुराज की मूल भावनाओं को समझते हुए महात्मा गाँधी ने हर एक के अधिकारों को सुरक्षित रखने की कोशिशें जारी रखी। और अंत में इस कोशिश में उन्होनें अपने प्राणों की आहुति भी दे दी।
आज पूरे विश्व में गुड गवर्नेन्स की बात होती है न कि सेल्फ गवर्नेन्स की। आज जनता जागरूक है, उन्हें अपनी मूलभूत आवश्यकताओं से आगे भी कई अधिकार चाहिए और वो अधिकार वो किसी भी हालत में लेना चाहते हैं। चिली में प्रदर्शन, थाईलैंड में राजशाही के खिलाफ जुलूस, कई राष्ट्रों में बेरोज़गारों के खिलाफ उग्र पथराव और अपने देश में ही आए दिन छात्रों का धरना कहीं न कहीं गुड़ गवर्नेन्स के सही स्तर तक न पहुँच पाने को यथार्थ रूप में दर्शाते हैं। यूनाइटेड नेशंस सुशासन और सुराज की परिभाषा इस तरह से प्रस्तुत करता है। सुशासन (Good governance) से तात्पर्य किसी सामाजिक-राजनैतिक ईकाई (जैसे नगर निगम, राज्य सरकार आदि) को इस प्रकार चलाना कि वह वांछित परिणाम दे। सुशासन के अन्तर्गत बहुत सी चीजें आतीं हैं जिनमें अच्छा बजट, सही प्रबन्धन, कानून का शासन, सदाचार आदि। इसके विपरीत पारदर्शिता की कमी या सम्पूर्ण अभाव, जंगल राज, लोगों की कम भागीदारी, भ्रष्टाचार का बोलबाला आदि दुःशासन के लक्षण हैं।
‘शासन’ शब्द में ‘सु’ उपसर्ग लग जाने से ‘सुशासन’ शब्द का जन्म होता है। ’सु’ उपसर्ग का अर्थ शुभ, अच्छा, मंगलकारी आदि भावों को व्यक्त करने वाला होता है। राजनीतिक और सामाजिक जीवन की भाषा में सुशासन की तरह लगने वाले कुछ और बहुप्रचलित-घिसेपिटे शब्द हैं जैसे – प्रशासन, स्वशासन, अनुशासन आदि। इन सभी शब्दों का संबंध शासन से है। ’शासन’ आदिमयुग की कबीलाई संस्कृति से लेकर आज तक की आधुनिक मानव सभ्यता के विकासक्रम में अलग-अलग विशिष्ट रूपों में प्रणाली के तौर पर विकसित और स्थापित होती आई है। इस विकासक्रम में परंपराओं से अर्जित ज्ञान और लोककल्याण की भावनाओं की अवधारणा प्रबल प्रेरक की भूमिका में रही है। इस अर्थ में शासन की सभी प्रणालियाँ कृत्रिम हैं। इस प्रकार हम कह सकते है कि सुशासन व्यक्ति को भ्रष्टाचार एवं लालफीताशाही से मुक्त कर प्रशासन को स्मार्ट S(simple)साधारण,M(moral)नैतिक,A(accountable)उत्तरदायी,R(responsible)जिम्मेदारी योग्य,T(transparent)पारदर्शी बनाता है ।
संयुक्त राष्ट्रसंघ के अनुसार सुशासन के निम्नलिखित आठ विशेषताएँ होतीं हैं-
विधि का शासन (rule of law)
समानता एवं समावेशन (equity and inclusiveness)
भागीदारी (participation)
अनुक्रियता (responsiveness)
बहुमत/मतैक्य (consensus oriented)
प्रभावशीलता दक्षता (effectiveness and efficiency)
पारदर्शिता (transparency)
उत्तरदायित्व (accountability)
निष्पक्ष आकलन
सुराज के प्रत्यक्ष रूप कई जगहों पर आज देखने को मिल रहे हैं। भूटान विश्व का पहला देश है जिसने सकल राष्ट्रीय खुशी सूचकांक जारी की। जीएनएच इंडेक्स में नौ डोमेन शामिल हैं
मनोवैज्ञानिक स्वस्थ्य
स्वास्थ्य
शिक्षा
समय का सदुपयोग
सांस्कृतिक विविधता और लचीलापन
सुशासन
सामुदायिक जीवन शक्ति
पारिस्थितिक विविधता और लचीलापन
जीवन स्तर
जीएनएच इंडेक्स में सामाजिक-आर्थिक चिंता के दोनों पारंपरिक क्षेत्रों जैसे जीवन स्तर, स्वास्थ्य और शिक्षा और संस्कृति और मनोवैज्ञानिक कल्याण के कम पारंपरिक पहलू शामिल हैं। यह अकेले खुशी ’की व्यक्तिपरक मनोवैज्ञानिक रैंकिंग के बजाय भूटानी आबादी की सामान्य भलाई का एक समग्र प्रतिबिंब है।
भारत में मध्य प्रदेश में पहली बार डिपार्टमेंट ऑफ़ हैप्पीनेस की स्थापना की गई। हाँलाकि ऐसा नहीं है कि सुराज लाने की कोशिश पहली बार हो रही है।
राजस्थान के नागौर में पंचायती राज़ का अवलोकन, जंगल में रह रहे आदिवासियों को माइनर प्रोडट्स बेचने का अधिकार एवम उनकी जल,जंगल ,ज़मीन की नीति को मजबूती प्रदान करना , फंडामेंटल राइट्स और संविधान के भाग चार के अनुच्छेद 36 से 51 कहीं न कहीं गुड गवर्नेन्स की ही बात करते हैं। लेकिन क्या हम सही मायनों में सुशासन के करीब भी आ पाए हैं ? प्रजातंत्र संख्याओं का खेल है लेकिन संख्या कभी भी स्वयं नहीं बोलते। संख्या वही बोलते हैं जो उनसे बोलबाया जाता है। अगर हम नीचे दिए है कुछ तथ्यों का अध्ययन करें तो सुराज की वर्तमान स्थिति का सही आँकलन करना आसान हो जाएगा।
भारत द्वारा 2018 में निम्न अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षणों में हासिल किया गया स्थान-
ग्लोबल हंगर इंडेक्स:103 / 119
मानव पूंजी सूचकांक: 158/195
वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट: 133/155
मानव विकास सूचकांक: 130/188
ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट: 108/144
अरबपतियों की संख्या: 3/71
व्यापार सूचकांक करने में आसानी: 77/190
वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता सूचकांक: 58/140
ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स: 57/130
स्टील उत्पादन: 2/38
प्रेस फ्रीडम इंडेक्स: 138/180
ई-सरकार: 96/192
ग्लोबल पीस इंडेक्स: 136/163
पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक: 177/180
गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए): 3/150
शिक्षा सूचकांक: 92/145
ट्रेडिंग एक्रॉस बॉर्डर्स: 80/190
दुनिया का सबसे बड़ा देश: 117/168
वर्ल्ड गिविंग इंडेक्स: 124/146
महिला उद्यमियों का मास्टरकार्ड इंडेक्स (MIWE): 52/57
स्तनपान की प्रारंभिक शुरूआत: 56/76
सिगरेट पैकेज स्वास्थ्य चेतावनी: अंतर्राष्ट्रीय स्थिति रिपोर्ट: 5/206
ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स 2018: 6 वीं
दुग्ध उत्पादन: 2
ग्लोबल एआई नौकरियां: 5 वीं
चोरी रैंकिंग सूचकांक: 19 वीं
प्रबंधन विकास रिपोर्ट: 44 वीं
वैश्विक पासपोर्ट सूचकांक रैंकिंग: 66 वाँ
स्टार्ट-अप उद्योग सूचकांक: 37
एफडीआई विश्वास सूचकांक: 11 वां
आर्थिक स्वतंत्रता सूचकांक: 130
महिलाओं के लिए दुनिया के सबसे खतरनाक देश: 1
मानसिक और व्यवहार संबंधी विकार सूची: 1
लोगों की मदद करने की उच्चतम संख्या: 2
राष्ट्रमंडल नवाचार सूचकांक: 10 वीं
कुछ मामलों में हम अपने पड़ोसी राष्ट्र भूटान और श्रीलंका से भी पिछड़े नज़र आते हैं लेकिन प्रयत्न जारी रहना चाहिए। आईडिया ऑफ़ इंडिया के लेखक सुनील खिलनानी लिखते हैं मगध साम्राज्य से लेकर मुग़ल शासन तक भारत की नीतियों में सुशासन का गुण मौजूद रहा है। सुराज और राम राज्य अगर पर्याय नहीं तो कतिपय पूरक जरूर हैं। रामराज्य में सबको एक अधिकार प्राप्त होगा लेकिन सुराज में कम से कम जिनका जो अधिकार है वो जरूर प्राप्त होना चाहिए। अगर हम सुराज की तरफ अग्रसर हैं तो राम राज्य को प्राप्त कर पाना भी बहुत कठिन नहीं होगा।
हरिवंश राय बच्चन के शब्दों में –
“गहन, सघन ,मनमोहक तरूवन तक मुझको आज बुलाते हैं,
किन्तु किए जो वायदे मैंने ,वो याद मुझे आ जाते हैं,
अभी कहाँ आराम बदा ,यह मूक निमंत्रण छलना है ,
अभी मुझको रूकने से पहले मीलों-मीलों चलना है। ”
— सलिल सरोज