तोल मोल के बोल
मै देने की बात करता
तुम लेने कि बात करते
लेने देने का फर्क न समझकर
बस अकड़ जाते हो।
थोडी सी हिन्दी पढी होती
तो आज हिन्द को जख्म न देते
जनसभाओ में यूँ उल्टा-पूल्टा
कभी प्रवचन ना देते।
थोडा सा इतिहास पढा करो
इंदिरा और अटल का भाषण सुना करो
जो भारतीय संस्कृति से लवरेज थी
जनसभाओं में यूँ न
विदेशी संस्कृति लाया करो।
थोडी बहुत ट्रेनिग की जरूरत
बोलचाल की परिभाषा जानो
तोल तौल के बोले वही
सही राजनीतिज्ञ माना जाए।
रौब वही तेवर वही
बदलेगा नहीं स्वरूप
एक दशक होने को आये
कार्यकर्ताओ के दम रहे छूट।
अल्हड़पन साफ झलकता है
जैसे पहाड़ के नीचे ऊँट
कैसे बढेगी साम्राज्य जब
ऐसे मुख और ऐसी करतूत।
— आशुतोष