नया साल
अच्छे दिन की आस में उन्नीस गुजर गया।
दोस्तों फिर से संभलने का वक़्त आ गया।।
मायूस देखा है आदमी को प्याज के लिए।
भाव बढ़ते बढ़ते प्याज कहाँ से कहाँ आ गया।।
रात भर जी एस टी ने सोने नहीं दिया आदमी को।
नये सामान खरीदने का लो वक़्त आ गया।।
पुराने नोट सा मन हो गया आदमी का दोस्तों।
अब नये नोट जैसा बदलने का वक्त आ गया।।
नया भारत बनेगा बुलेट ट्रेन चलेगी देश में।
कलाम के सपनों का भारत बनाने का वक़्त आ गया।।
गांधी की अहिंसा का पाठ फिर पढ़ने की जरूरत है।
देश मे हिंसक घटनाओं को रोकने का वक़्त आ गया।।
राम मन्दिर भी बनेगा लेकिन राम कौन बनेगा ।
सत्य के लिए असत्य से लड़ने का वक़्त आ गया।।
मासूमों के साथ जो करते हैं अत्याचार दोस्तों।
उन्हें फाँसी पर लटकाने का वक्त आ गया।।
देश मे संस्कार सभ्यता जीवित कैसे रहे।
मानवीय मूल्यों की स्थापना का फिर वक़्त आ गया।।
— कवि राजेश पुरोहित