गीतिका/ग़ज़ल

पत्थरों पर सर पटक आंसू बहाना छोड दे

पत्थरों पर सर पटक आंसू बहाना छोड दे
मुफलिसी के दौर में अब मुस्कराना छोड दे ॥
तू समन्दर को बहा या कि दरिया अश्क के
बदलेंगे न वो कभी चाहे जमाना छोड दे ॥
आदतें जो बन गईं वो छूटती हैं कब कहां
चाहते तारों से हो कि टिमटिमाना छोड दे ॥
गर मोहब्बत है तो इतना ध्यान रखना सदा
प्यार में इक दूसरे को आजमाना छोड दे ॥
भौरों की आवारगी पर रंज आता है मुझे
कह दो फूलों से ‘अरुण’ वो चुमाना छोड दे ॥

-डा.अरुण निषाद

डॉ. अरुण कुमार निषाद

निवासी सुलतानपुर। शोध छात्र लखनऊ विश्वविद्यालय ,लखनऊ। ७७ ,बीरबल साहनी शोध छात्रावास , लखनऊ विश्वविद्यालय ,लखनऊ। मो.9454067032