कुंडली
तुम आई न प्रियतमे, आई निष्ठुर शीत ।
शूल सरीखी शीत में,घायल मेरे गीत ।
घायल मेरे गीत ठिठुरते हैं रातों में ।
खो जाती है नींद ख्वाब की बारातों में,
विकल विरह में रहता है मेरा मन गुमसुम।
आश लगाए बैठा है, अब आ जाओ तुम
तुम आई न प्रियतमे, आई निष्ठुर शीत ।
शूल सरीखी शीत में,घायल मेरे गीत ।
घायल मेरे गीत ठिठुरते हैं रातों में ।
खो जाती है नींद ख्वाब की बारातों में,
विकल विरह में रहता है मेरा मन गुमसुम।
आश लगाए बैठा है, अब आ जाओ तुम