मुक्तक
“मुक्तक”
बहुत अरमान था दिल में कि इक दिलदार मिल जाए।
मेरे इस बाग में भी फूल इक गुच्छदार खिल जाए।
समय की डोर पकड़े चल रहा था ढूढ़ता मंजिल-
मिला दो दिल सनम ऐसे कि पथ पतवार हिल जाए।।
बहुत अहसान होगा आप का मान मिल जाए।
तरस नयनों की मिट जाए परत पहचान मिल जाए।
गिरी बूँदें जमी पर आँसुओं को पी नहीं सकते-
अगर गुरबत निगाहों में दिखे मुस्कान मिल जाए।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी