अपना हिंदुस्तान…
धन्य धन्य हो पांव पखारे जिसके विस्तृत सागर.
जिसकी माटी में रमने को आतुर रहे नटनागर.
बारी बारी आ देवों ने डेरा यहां जमाया.
जिनकी यश गाथा को ऋषियों मुनियों ने है गाया.
राम. कृष्ण और महादेव भी जिसके रहे दीवाने.
चार वेदों में पसरे हैं युग युग के अफसाने.
असुरों के संहार की खातिर जहां देवियां आईं.
नारी ही हैं शक्ति स्वरूपा सबको विश्वास दिलाईं.
राणा. शिवा औ सिख गुरुओं को जां से प्यारी माटी.
दुश्मन भी भौंचक्के रह गए जब जाने परिपाटी.
जांबाजों की बनी रही यह अद्भुत पाठशाला.
अरि दल भी हैरान हुए जब पड़ा कभी भी पाला.
उत्तर में हो खड़ा हिमालय करता ये ऐलान.
जग में है सबसे प्यारा अपना हिंदुस्तान.
देश से बढ़कर नहीं है कुछ पर सिरफिरे अनजान.
उनकी करतूतों का धुआं छू रहा आसमान.
अब नहीं सरकार को खामोश रहना चाहिए.
हरहाल में उत्पातियों को दंड मिलना चाहिए.
— उमेश शुक्ल