क्या सैनिक का कोई मानवाधिकार नहीं है ?
पुलिस का साधारणतः अर्थ रक्षक होता है जिसका उपयोग किसी भी देश की अन्दरूनी नागरिक सुरक्षा के लिये ठीक उसी तरह से किया जाता है जिस प्रकार किसी देश की बाहरी अनैतिक गतिविधियों से रक्षा के लिये सेना का उपयोग किया जाता है। पुलिस का कार्य कानून व्यवस्था बनाए रखना, अपराध को रोकना, अपराध की जांच करना, अपराध करने वाले व्यक्ति की गिरफ्तारी करना, किसी व्यक्ति के जान, माल और आजादी की सुरक्षा करना हैं | समाज में पुलिस का डर होना भी जरुरी है लेकिन वह नकारात्मक ना हो | देखा जाए तो पुलिस समाज का सबसे बड़ा मित्र है जो शांति और सदाचार को समाज में बढ़ावा देता है और अशांति और अराजकता पैदा करनेवालों को गिरफ्तार करता है उन्हें नियंत्रित करता है |
हिंदी फिल्मों में भी पुलिस के रोल पर अनेक फ़िल्में बनी और आजतक लोगों के दिलों पर उन फिल्मों की छाप है सच्चा झूठा, लहू के दो रंग, सत्यमेव जयते, ज्वेल थीफ, जंजीर, शोले, दीवार, अमर अकबर एंथनी, जख्मी औरत, फूल बने अंगारे, अंधा कानून ,सरफरोश, बाजीगर, सत्या, दबंग, सिंघम जैसी फिल्में । पुरानी फिल्मों में इंस्पेक्टर स्पष्टवादी और अति ईमानदार होते थे । यानी जमीर और फर्ज के लिए अपना सब कुछ त्याग करने को तैयार रहते थे | कुछ फिल्मों में पुलिस को घूसखोर, अत्याचारी और राजनितिक नेताओ का गुलाम इस रूप में भी दिखाया गया है ये दो ही पहलु है लेकिन पुलिस का कार्य बड़ा कठिन होता है राजनेताओं की विभिन्न रैलियों के दौरान सुरक्षा और यातायात की व्यवस्था बनाये रखना, जलूसों को शान्तिपूर्ण ढंग से सम्पन्न करना, हड़ताल, धरनों और बंद के दौरान असामाजिक तत्वों से राष्ट्र की सम्पत्ति की रक्षा करना, राजनेताओं की व्यक्तिगत सुरक्षा करना, चोर डकैतों और लुटेरों से आम नागरिक की रक्षा | पुलिस कर्मचारी चौबीस घंटे खतरों से जूझते हैं चोर, डकैतों, आतंकवादियों , जेहादियों से मुठभेड़ के दौरान घायल हो जाते हैं भीड़ के द्वारा पथराव की स्थिति में चोट खाते हैं सर्दी, गर्मी, बरसात में भी डटें रहते है | 1947 से अभी तक 34,844 पुलिस जवान शहीद हो चुके हैं जिनमें 424 पुलिस जवानों ने इसी वर्ष अपनी शहादत दी है । आज इन्टरनेट और अखबार पुलिस के प्रति नकारात्मक खबरों से भर दिए गए है ये वामपंथी गैंग का षड़यंत्र पुरे भारत में चल रहा है |
नागपुर के ही एक पुलिस हवालदार से मुलाकात के दौरान उन्होंने बताया की वह एक बहुत गरीब परिवार से आया है पेपर बाटकर, दूध बाटकर परिवार चलाना और नाईट स्कूल में पढाई करके परीक्षा पास करके वह पुलिस हवलदार बना, श्री रमेश चिंतामन कन्हेरे ( उम्र ५५ वर्ष ) उन्होंने अपना नाम बताया जो फ़िलहाल बजाज नगर पुलिस थाने में पुलिस हवालदार के रूप में कार्यरत है अभी MNC पथक प्रमुख के तौर पर कार्यरत होकर वह गरीबों की सेवा में लगा रहता है | सरकारी सुविधा का लाभ गरीबों तक पहुचें उसके लिए वो व्यक्तिगत रूप से प्रयास करते है महिला सशक्तिकरण के लिए अनेक कार्यक्रम में सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ वो हमेशा कार्यरत रहते है काचिपुरा बस्ती में और अनेक बस्तियों में महिला सशक्तिकरण के लिए अनेक कार्यक्रम आयोजित किये गए है | महिला सुरक्षा के मुद्दे पर उन्होंने कहा की उनकी भी एक बेटी है जो साइंस की पढाई कर रही है वो गंभीरतापूर्वक कहते है की इस विषय पर उनकी ओर से कोई लापरवाही नहीं की जाती है तुरंत एक्शन लिया जाता है कोई रात को कभी भी कॉल करें वो सहायता के लिए हमेशा तत्पर रहते है | नागपुर पुलिस हमेशा महिलाओ के सुरक्षा के बारे में सतर्क रहती है उन्होंने अपना मोबाइल नंबर (९९२३२५७११२) देते हुए कहा की नागपुर के किसी भी कोने से कोई महिला अगर उनसे सहायता मांगती है तो वो अपनी जिम्मेदारी अच्छे से समझती है और तुरंत कार्यवाही करते है | पुलिस के त्याग और सेवा के प्रति समर्पण भाव को एक समाजसेवक अच्छे से समझ सकता है समाज की भी जिम्मेदारी है की वो पुलिस को मित्र माने उनके परिवार को अपना परिवार समझे और इस विराट समाज में कानून व्यवस्था बनाए रखने में अपना योगदान देवे !
क्या सैनिक का कोई मानवाधिकार नहीं है ?
मानवाधिकार की आड़ में पत्थरबाज , उग्रवाद , नक्सलवाद , आतंकवाद, दंगे बाज , रेपिस्ट और भी कई अपराधों को इस देश में संरक्षण मिल रहा है ये मानवाधिकार के ठेकेदार इनके मरण-हरण पर विलाप करते है और वो मानवाधिकार वाले अयोध्या , अक्षरधाम और भारत में होनेवाले सभी आतंकवादी हल्लो पर जेहादियों के दंगो पर मौन हो जाते है जब इन्ही दंगो में कई सैनिक और जवान देश के घायल हो जाते है और शहीद हो जाते है तो ये कथित मानवाधिकारी अपने बिल में जाकर घुस जाते है और टुकड़े टुकड़े गैंग के ये सदस्य खुशियाँ मनाते है |सभी लोग जानते है की कश्मीर में कैसे मानवाधिकार के ठेकेदारों ने पुलिस और सैनिकों के हाथ बांध दिए थे पत्थरबाज हमले करते थे और पुलिस उन्हें लाठी भी नहीं मार पाता था | पुलिस को खुद अपनी सुरक्षा का भी अधिकार इन कथित मानवाधिकार वालो ने छीन लिया था | मानवाधिकार के ठेकेदार इन पत्थरबाज , उग्रवाद , नक्सलवाद , आतंकवाद, दंगे बाज , रेपिस्ट को कभी गरीब, कभी नादान, कभी कम उम्र के तो कभी भटके हुए युवा बताकर उनकी सहायता करती रही है भारत में इसके लाखो उदहारण आपको देखने को मिल जाएगे | क्या ये संभव है की पुलिस कार्यवाही किये बगैर पत्थरबाज , उग्रवाद , नक्सलवाद , आतंकवाद, दंगे बाज , रेपिस्ट इन पर काबू पाया जाए ? बिलकुल भी संभव नहीं है जब मानवता ही इनसे खतरे में है तो मानवाधिकार कैसा इन लोगो का ? क्यों इनको मानवाधिकार दिया जाए जब ये दुसरो को ही मानव नहीं मानते ? आतंकवादी याकूब मेनन के लिए रात को २ बजे मानवाधिकार वाले कोर्ट खोल देते है उसे फांसी से बचाने के लिए, सैनिक जो दिन रात समाज की सुरक्षा, शांति और कानून कायम करते है अपने सिर पर पत्थर खाने वाले और गोलियां खानेवालों लिए कोई मानवाधिकार वादी सामने नहीं आते उल्टा पुलिस को ही ये मानवाधिकारवादी बदनाम करते है राष्ट्र की सुरक्षा से खिलवाड़ करते है | समाज को चाहिए की ऐसे मानवाधिकार के ठेकेदारों को जो देश की सुरक्षा को अपने एजेंडा (षड़यंत्र) के तहत नुकसान पहुचाते है उन्हें पहचाने और दण्डित करें !