ग़ज़ल
करें भी अब शिकायत क्या भला हम इस ज़माने से
नहीं कोई यहाँ पीछे किसी को भी सताने से ।
ज़हर इतना लगा घुलने हवाओं में यहाँ पर अब,
कली भी हिचकिचाती है दोबारा खिलखिलाने से।
उदासी हर तरफ़ छाई हुई इतनी न पूछो तो
झिझकता दिल भी कोई गीत प्यारा गुनगुनाने से ।
ज़रा सा मुस्कुरा ले मन भुलाए आँख के आंसू
सभी गम भूल जाते हैं फक़त इक मुस्कुराने से ।
समझ क्यूँ बात ये सबको कभी ना आज तक आई
सुकूं मिलता नहीं इक पल किसी का दिल दुखाने से ।
हमेशा टूटती रहती मेरे सपनों की महफ़िल यूँ
लगे डर ख़्वाब इन नैनों में फिर से अब सजाने से।
अरे अब दौर देखो तो अजब कैसा सा है आया
नहीं खुश लोग होते शीश रब को भी झुकाने से ।
— डाॅ सोनिया