पंछी
हम पंछी नील गगन के
डाल डाल पर चूने दाना
तिनका तिनका जोड़कर
बनाते अपना ठिकाना।
एक झोंका मस्त पवन का
उड़ा ले जाता उसे
फिर वारिश और सर्द रातों में
इधर उधर भटकाता मुझे।
चंचलता खो जाती
चिल्लाहट आ जाती
खीर अपनो को अपने ही
बार बार सताती और रूला जाती।
— आशुतोष