ग़ज़ल
हर इक क़दम पे भुलावे की चाल देता हूं
बुरा हो वक़्त तो हंस कर निकाल देता हूं
कभी भी ऑसुओं से तर नहीं करता दामन
मैं अपने दर्द हवा में उछाल देता हूं
मैं नेकियों को तिजोरी में रख नहीं पाता
किसी ग़रीब की झोली में डाल देता हूं
ख़ुद अपने अश्क को ऑखों में पी लिया मैंने
मैं अपने ज़ब्त की सबको मिसाल देता हूं
ख़ुद अपने हाल ओर हालात से भी लड़ते हुए
मैं ख़ुद को वक़्त के हाथों में डाल देता हूं
— मनोहर मनु “गुनावी”