न करो रब से गिला, तोहफे कमतर मिले।
जो भी पाया, वो हसीन लम्हें बेहतर मिले।
आओ मिल के इन परींदों के ख्वाब सजा दे,
कोई न फिरे खानाबदोश, हरेक को घर मिले।
क्या पता,कल इन्हीं रास्तों से गुजरना पडे,
चुन लो इन राहों से, जो भी काँटे, पत्थर मिले।
क्यों करें शिकायत, कौन यहां मुकम्मल है,
कहीं टूटे पैमाने, कहीं प्यासे समंदर मिले।
न बैठों यूं उदास, कासिद का इंतजार करों,
फिर आये बहार,कोई अच्छी खबर मिले।
ये सर्द हवाएं हैं, सीने में सुलग रही आग,
उठेगा तूफान, जब नजर से नजर मिले।
— ओमप्रकाश बिन्जवे “राजसागर”