विद्वान् संपादक आदरणीय डॉ सिंहल साहब द्वारा लिखित पुस्तक “शान्तिदूत” साहित्यिक आत्मीयता के सद्प्रभाव से प्राप्त करने का पावन सुअवसर मिला। अवलोकन करने पर पुस्तकीय विषयवस्तु से विज्ञ हुआ। पुस्तक द्वापरकालीन ऐतिहासिक कथानक पर केन्द्रित है। पुस्तक इतिहास की एक ऐसी घटना पर आधारित है, जो युगों-युगों तक एक ऐसे घटनाक्रम के लिए सदैव याद रखी जाएगी, जिसने पारिवारिक रिश्तों की एक नई रेखा सुनिश्चित की है, और यह भी अवगत कराया कि जब-जब घर-परिवार में आपसी सहयोग प्रेम-स्नेह के बजाय एक-दूसरे को गिराने का प्रयास किया जाता है, तो वहां शान्ति नहीं अपितु अशांति का वातावरण व्याप्त हो जाता है और प्रारंभ हो जाता है, एक ऐसा महायुद्ध जो मानवीय संवेदनाओं को चुनौती दे देता है।
पुस्तक “शांतिदूत” इतिहास की एक ऐसी महान् गाथा पर केन्द्रित है, जिसे महाभारत के नाम से जाना जाता है। इस महायुद्ध को टालने हेतु विष्णु अवतारी प्रभु श्रीकृष्ण द्वारा पाण्डवों की ओर से शान्ति का सन्देश लेकर कौरवों की राजसभा में जाना और उन्हें इस पारिवारिक झगड़े को विनाश का पर्याय बनने से बचाने हेतु कई प्रकार से समझाना, लेकिन दुर्योधन पर तो जैसे युद्ध का भूत ही सवार था, और तो और स्वयं जगद्नियन्ता भगवान् जिसे समझा रहे हों और वह फिर भी समझने को तैयार नहीं, तो फिर विनाश नहीं तो और क्या होगा। अपने भक्तों की रक्षा हेतु शान्ति दूत बने श्रीकृष्ण को स्पष्ट ज्ञात हो गया कि अब इस युद्ध को कतई टाला नहीं जा सकता है, अतः उन्होंने धर्म के पक्षधर पाण्डवों का साथ देकर उन्हें विजयश्री दिलाई।
संपूर्ण महाभारत की महागाथा में श्रीकृष्ण जी के योगदान को अद्वितीय व सबसे प्रभावशाली पात्र के रूप में सदैव याद किया जाएगा। अर्थात् यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि शान्तिदूत श्रीकृष्ण के बिना महाभारत का वर्णन अधूरा ही है।
पुस्तक में लेखक (आप) ने जिस प्रकार से श्रीकृष्ण का शान्तिदूत के रूप में उनकी महान् पात्रतापूर्ण चरित्र का वर्णन किया है, निश्चित ही बहुत अच्छा व सार्थक तथा अद्वितीय वर्णन है।
यह पुस्तक भले ही श्रीकृष्ण के शान्तिदूत संबंधी पात्रता पर आधारित है, परन्तु सबसे महत्वपूर्ण व पुस्तक की बड़ी उपयोगिता इस बात पर बहुत अधिक बढ़ गई है कि यह एक वृहद्-विशाल महाभारत महाग्रन्थ का संक्षिप्त रूप में एक ऐसा ग्रंथ बन चुका है, जो आम जन-मानस तक भी महाभारत के ऐतिहासिक कथानक को आसानी से उपलब्ध हो सकेगा, और बड़े ग्रंथ की पहुंच व प्राप्ति तथा ज्ञान के अभाव के कारण इस ऐतिहासिक महायुद्ध के विवरण को सरलता वह सहजता से पढ़ व समझ सकेंगे। इस आधार पर यह पुस्तक आकार में छोटी होते हुए भी एक विशाल महाग्रंथ है।
पुस्तक “शान्तिदूत” की इन विशिष्टताओं और महत्ताओं को देखते हुए, पुस्तक के लेखक को उनके इस ऐतिहासिक ज्ञान तथा विवेचन शैली की हृदय से तारीफ़ करते हुए बहुत-बहुत साधुवाद संप्रेषित है। लेखक (डॉ सिंहल ‘अन्जान’) जी की उनकी इस साहित्यिक कर्त्तृत्व के लिए भूरी-भूरी प्रशंसा कर सतत् साहित्यिक सफलता व सुख-समृद्धि व संपन्नता हेतु शुभ कामनाएं प्रेषित हैं। “शान्तिदूत” पुस्तक सतत् संग्रहणीय व संदर्भ ग्रंथ के रूप में पाठकों के लिए एक महत्वपूर्ण कृति है। यह इस पुस्तक में वर्णित आख्यान से स्पष्टत: सिद्ध है। पुनः पुस्तक के लेखक को साधुवाद व धन्यवाद तथा शुभकामनाएं।
— शम्भु प्रसाद भट्ट ‘स्नेहिल’