व्यंग्य – वैलेंटाइन्स डे की वायु
आज दुनिया ‘शॉर्टकट के सिद्धांत’ पर चल रही है। दिनोंदिन व्यस्त होते लोगों को कतार में खड़े रहना पसंद नहीं हैं। कतार के अंत में खड़ा व्यक्ति भी ‘विटामिन एम’ और ‘शॉर्टकट के सिद्धांत’ के सफल गठबंधन के तहत अपना काम सबसे पहले करवाने की योग्यता रखता है। महंगाई के बढ़ते दौर में इंसान की उम्र ही नहीं घट रही है बल्कि यहां तो प्रेम की उम्र भी बहुत छोटी हो रही है। पहले प्रेम की उम्र सात जन्म की होती थीं, जो आज घटकर सात दिनों की हो गईं है।
पहले दिन प्रेमिका के दिल के दफ्तर में अपने प्रस्ताव की अर्जी भारी मतोें से पारित करवा लो। दूसरे दिन इस खुशी में चॉकलेट दे दो। तीसरे दिन डैडी के पैसों से टेडी दे दो। चौथे दिन नेता बनकर जमकर वायदे कर दो। पांचवें दिन प्यारी-प्यारी पप्पी ले लो और दान-पुण्य में विश्वास रखते हो तो दे भी दो। छठे दिन हग लो और सातवें व अंतिम दिन गुलाब देकर काम तमाम कर लो। फिर आठवें दिन सीधी खुशखबरी आती है। नौवें दिन नफरत डे होता है। दसवें दिन गाली डे होता है। ग्यारहवें दिन झगड़ा डे और बारहवें दिन तलाक डे तक की नौबत आने लग जाती है। फिर हीरो ‘मैंने प्यार किया’ की जगह कहने लगता है ‘मैंने प्यार क्यूं किया’। विदेशी प्रेम का यह प्रेम, संभोग और विश्वासघात का दृष्टिकोण क्षणिक आनंद की अनुभूति है। यदि यकीन नहीं हो तो ट्राई करके देख लो या फिर ट्राई किये हुए से पूछ लो। उनकी फिलिंग आपको ‘जिंदगी झंड बा’ वाली ही मिलेगी।
यहीं पाश्चात्य प्रेम का दर्शनशास्त्र है। जिसमें चमड़े को तवज्जो दी जाती है। जहां प्रेम को तलाशने के लिए गुणों को नहीं ‘इंच-इंच, सेंटीमीटर-सेंटीमीटर’ को कसौटी पर कसा जाता हैं। जहां प्रेम का पैमाना ‘एम फाॅर मनी’ है। जिसके पास मनी है, समझो उसकी हनी है, बाकी सारे लोग उसकी नजरों में फनी है। विडंबना है कि भारत वर्ष में बासंती बयारों का असर कम हो रहा है और हमारा इंडियन हीरो वैलेंटाइन्स डे की वायु में बहता जा रहा है। पूरब का सूरज पश्चिम में उगने लगे तो हैरानी तो होती ही है। एक बात जान लीजिए जो पूरब में शादी के बाद होता है, वो पश्चिम में सबकुछ शादी के पहले ही हो जाता है। बस दोनों में इतना ही अंतर है। प्रेम के शाश्वत रूप को चुनौती देने वाला वैलेंटाइन्स डे सात मील भी चल नहीं पाता है। इसकी बैटरिया लूल हो जाती है। सांस फूल जाती है।
यदि हमें प्यार का ढाई अक्षर संत वैलेंटाइन से सीखना पड़े तो यह हमारे लिए नागवार गुजरेगा। ये हमारे लिए पानी में डूब मरने वाली बात होगी। जिस सरजमीं पर प्रेममूर्ति व सोलह हजार रानियों के दिलों के राजा श्रीकृष्ण ने अवतरित होकर प्रेम के प्रतिमान गढ़े हैं। जहां की माटी के कण-कण में प्रेम की सुगंध शरीर में रक्त की तरह घुली-मिली है। वहां रोमियोगिरी वाले प्रेम का कोई स्थान नहीं।
— देवेंद्रराज सुथार
इंडिया ने बहुत उनती कर ली है .