जली बाती भरे सपने
विरह का गान लिखता हूँ
ह्रदय उपमान लिखता हूँ
गए सब छोड़कर अपने
जली बाती भरे सपने।
दिए की ज्योति शुभ उज्ज्वल
भरे नित भाव है निर्मल
प्रकाशित है धरा करती
हृदय में भाव नव भरती।
लगी है ज्योति फिर तपने
जली बाती भरे सपने।
किये संघर्ष जीवन में
खिले तब पुष्प मधुबन में,
सकल संसार आलोकित
करें नित प्राण अवलोकित।
लगे हैं नाम सब जपने
जली बाती भरे सपने।
कभी जलते कभी बुझते
किरण आशा की है भरते।
नवल है आश जल बाती
अंधेरा दूर कर जाती
सजाकर नेत्र में अपने
जली बाती भरे सपने।
— गीता गुप्ता ‘मन’