अबकी बार फिर आना
मैं कभी उसकी पायल की झनक,
कभी चूड़ी की खनक लिखता रहा,
कभी बिन्दिया कभी झुमकों में,
उसके रूप को श्रृंगारता रहा ।।
सोचा था मिलूंगा जब उससे,
उसके सौलह श्रृंगार में से,
चुरा लूँगा कोई एक निशानी,
रख लूँगा सदा के लिये छुपाके।।
आई थी जब वह मिलने
गहनों की जगह काले धागे ने,
ले रखी थी उसके गले में,
जो कर रहा था काला जादू मुझपे,
बचा रहा था उसे हर बुरी नजर से
सुहाग को सजा रखा था,
माथे और मांग में सिन्दूर से,
कलाई में समय चक्र सुशोभित था,
जो पहनती थी वह बहुत शौक से ।।
आकर नजदीक मेरे वह,
देकर समय चक्र अपना बोली हौले से,
अब न मीरा न राधा,
रूक्मणी बनना है तुम्हारी मुझे ।।
बनाओगे न ??
भूल न जाना ये समय चक्र,
जो हर पल याद दिलायेगा तुम्हें,
आकर जा चुकी थी वह,
मैं निस्तब्ध सा खोया रहा उसमें ।।
— रजनी चतुर्वेदी