जग को जीत सकूँगा मैं
जग को जीत सकूँगा मैं, यदि दृढ़ प्रतिज्ञ हो जाऊँ।
कड़ी मशक्कत व लगन से, करके ही दिखलाऊँ।।
सिकंदर एक मनुज था,जिसने इस ख़्वाब को देखा।
कोई भी कितना रोके मुझे, करना है उसे अनदेखा।।
दृढ़ संकल्पित हो कर मैं, सत्पथ पर बढ़ता जाऊँ।
सपना जो देखा है मैंने, सच करके उसे दिखलाऊँ।।
पथ में यदि शत कंटक, हर मोड़ पर मिलते जाएं।
दृष्टि से न ओझल होने दे, बस लक्ष्य पर बढ़ते जाएं।।
आसान नही होता है इतना, ख़्वाब को पूरा करना।
कभी असंभव हो जाता है, जीत को मिल सकना।।
बस! अपनी धुन में मस्त मगन, आगे मैं बढ़ता जाऊँ।
सत्पथ पर सद्कर्म से ही, अपनी मंजिल मैं पाऊँ।।
सफल हो सकूँ जीवन में, अभिमान कभी न लाऊँ।
सबके सुख दुःख में भी, अपना प्रतिभाग दिखाऊँ।।
इक दिन वह पल भी आए, लोगों का विश्वास मैं पाऊँ।
कड़ा परिश्रम व प्रभु आशीष, जग को जीत दिखाऊँ।।
— लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव