समय का फेर
वे अपने दुख का कारण और निवारण जानने उसी ज्योतिषी के भव्य ऑफिस में अपाइंटमेंट लेकर पहुँचे जो कभी उनकी खुशामद कर टाइम लेकर उनसे मिलने आता था। कुछ देर इंतजार के बाद जब उनका नम्बर आया, तब तक उनका चेहरा तमतमाने लगा था फिर भी अपने आप को संयत करते हुए वे ज्योतिषी के पास पहुँचे और अपनी मानसिक अशांति का कारण पूछा। वह पहले तो मुस्कराया और मन ही मन सोचने लगा कि-” यह व्यक्ति अफसरी के दौर में तो किसी की परवाह नहीं करता था, न घर-परिवार की, न जाति-बिरादरी की और न ही समाज की।पॉवर में जो था।स्वाभाविक ही था कि घर-परिवार, जाति-बिरादरी, समाज जन उसकी परवाह करते थे क्योंकि वह काम का आदमी था।अब रिटायरमेंट के बाद बेकाम का हो गया है तो बिना पूछ-परख दुखी होगा ही।”
फिर उसने ग्रह-नक्षत्र के आधार पर जो भी कारण-निवारण बताना थे,बता दिए।इसके बाद वह बोला -“सर ,एक परामर्श है ,इन सबका फल तभी मिलेगा जब आप अपना पुराना चौला उतार देंगे और समय के फेर को स्वीकार लेंगे।जंगल के शेर और सर्कस के शेर में अंतर तो होता ही है न!”