लघुकथा

समय का फेर

वे अपने दुख का कारण और निवारण जानने उसी ज्योतिषी के भव्य ऑफिस में अपाइंटमेंट लेकर पहुँचे जो कभी उनकी खुशामद कर टाइम लेकर उनसे मिलने आता था। कुछ देर इंतजार के बाद जब उनका नम्बर आया, तब तक उनका चेहरा तमतमाने लगा था फिर भी अपने आप को संयत करते हुए वे ज्योतिषी के पास पहुँचे और अपनी मानसिक अशांति का कारण पूछा। वह पहले तो मुस्कराया और मन ही मन सोचने लगा कि-” यह व्यक्ति अफसरी के दौर में तो किसी की परवाह नहीं करता था, न घर-परिवार की, न जाति-बिरादरी की और न ही समाज की।पॉवर में जो था।स्वाभाविक ही था कि घर-परिवार, जाति-बिरादरी, समाज जन उसकी परवाह करते थे क्योंकि वह काम का आदमी था।अब रिटायरमेंट के बाद बेकाम का हो गया है तो बिना पूछ-परख दुखी होगा ही।”
फिर उसने ग्रह-नक्षत्र के आधार पर जो भी कारण-निवारण बताना थे,बता दिए।इसके बाद वह बोला -“सर ,एक परामर्श है ,इन सबका फल तभी मिलेगा जब आप अपना पुराना चौला उतार देंगे और समय के फेर को स्वीकार लेंगे।जंगल के शेर और सर्कस के शेर में अंतर तो होता ही है न!”

*डॉ. प्रदीप उपाध्याय

जन्म दिनांक-21:07:1957 जन्म स्थान-झाबुआ,म.प्र. संप्रति-म.प्र.वित्त सेवा में अतिरिक्त संचालक तथा उपसचिव,वित्त विभाग,म.प्र.शासन में रहकर विगत वर्ष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण की। वर्ष 1975 से सतत रूप से विविध विधाओं में लेखन। वर्तमान में मुख्य रुप से व्यंग्य विधा तथा सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर लेखन कार्य। देश के प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में सतत रूप से प्रकाशन। वर्ष 2009 में एक व्यंग्य संकलन ”मौसमी भावनाऐं” प्रकाशित तथा दूसरा प्रकाशनाधीन।वर्ष 2011-2012 में कला मन्दिर, भोपाल द्वारा गद्य लेखन के क्षेत्र में पवैया सम्मान से सम्मानित। पता- 16, अम्बिका भवन, बाबुजी की कोठी, उपाध्याय नगर, मेंढ़की रोड़, देवास,म.प्र. मो 9425030009