लघुकथा – भरोसा
पिताजी की आदतों से रोहन बहुत परेशान था । जिसने भी रोहन के पढ़ाई के बारे में पूछा पिताजी का एक ही जवाब होता ‘धीरज धरो महाशय बेटा अफसर ही बनेगा ।’ प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में रोहन तीसरी बार असफल हुआ था । अब तो पिताजी के बातों से भी नफरत हो गई थी। एक दिन रोहन से रहा नहीं गया पिताजी से बोले -‘पापा आप इस तरह मेरा मजाक क्यों उड़ाते हो… जानबूझकर अनजान क्यों बनते हो.. मेरा तीसरा अटेंप्ट था उसमें भी फैल और आप हो कि रट्टू तोता बने फिरता हो.. देखिए अपनी आदत सुधारिए, नहीं तो मैं घर से बाहर रहकर पढ़ाई करूँगा।’
बेटे का गुस्सा देख पिताजी शांत स्वर में बोले -‘बेटा तुम्हें अपने बाप पर भरोसा भले ना हो लेकिन मुझे अपने बेटे पर पूरा भरोसा है एक दिन अफसर जरूर बनेगा।’ पिताजी के दृढ़विश्वास के आगे रोहन नतमस्तक हो गया।
— भानुप्रताप कुंजाम ‘अंशु’