वो सवाल से डरता बहुत है
वो सवाल से डरता बहुत है
जो भी जुल्म करता बहुत है
क्यों हुआ हादसा, क्यों लुटे रहजनें
अगर पूछो तो फिर लड़ता बहुत है
तालीमो-ओ – किताबों से ना कोई वास्ता
हुई गर संजीदी बातें तो बिगड़ता बहुत है
धर्म,जात,प्रान्त,संप्रदाय मिटाने की बातों पे
घड़ी भर में आँखों में ख़ून उतरता बहुत है
किसकी थी सब करतूतें, किसने की ये मक्कारी
नाम अगर अपना आए तो फिर मुकरता बहुत है
— सलिल सरोज