ग़ज़ल
अगर पास हक़ की क़माई नहीं है
अभी प्यास तुमने बुझाई नहीं है
ये सोचा ख़ुदा से उसे छीन लाऊँ
मगर ऐसी तक़दीर पाई नहीं है
जहाँ पर फ़क़त राज़ शैतां का होगा
जहाँ में सुकूँ मेरे भाई नहीं है
घटा ग़म की बरसी मेरे दिल में ही बस
घटा ग़म की अम्बर पे छाई नहीं है
क़लम से दिया अम्न सारे जगत को
क़लम से तबाही मचाई नहीं है
— बलजीत सिंह बेनाम